शंखनाद INDIA/ उत्तराखंड,हरिद्वार । कुर्सी एक और अध्यक्ष दो-अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष की कुर्सी के लिए मचे घमासान ने इतिहास बना दिया है। आपको बता दें कि आठ साल पहले भी परिषद में दो भागों में बांटा गया था, लेकिन दोनों ही अध्यक्ष हरिद्वार के नहीं थे। इस बार दोनों गुटों के अध्यक्ष हरिद्वार से बने हैं। इससे संत समाज ही नहीं, बल्कि नेता एवं सरकारें भी असमंजस में फंस गए हैं।
अखाड़ा परिषद संतों की सर्वोच्च संस्था है। नेता हो या अभिनेता संतों के दर्शन और आशीर्वाद के लिए अखाड़ों में लाइन लगती है, लेकिन संतों में कुर्सी की आपसी खींचतान से स्थानीय विधायक से लेकर सरकार के मंत्रियों ने खुद को अलग रखा है।
अखाड़ा परिषद के ब्रह्मलीन अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के आकस्मिक निधन के बाद संतों की राजनीति और कुर्सी का झगड़ा अखाड़ों से बाहर आया है। झगड़े ने इतिहास को दोहराया है। कुल 13 अखाड़ों में दो भाग हुए और सात अखाड़ों ने 21 अक्तूबर को महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी को अध्यक्ष एवं बैरागी अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री चुन लिया। इन सात अखाड़ों में शामिल निर्मल अखाड़े में भी दो फाड़ हुए और महंत रेशम सिंह और उनके संतों ने परिषद की मौजूदा कार्यकारिणी को समर्थन दे दिया।
प्रयागराज में निर्मल अखाड़े के रेशम सिंह गुट समेत सात अखाड़ों के संतों ने मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी को परिषद का अध्यक्ष चुन लिया, जबकि बैरागी अखाड़े के श्रीमहंत मदनमोहन दास ने पत्र भेजकर समर्थन दे दिया। श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष चुन लिए गए। उनका चयन अखाड़े की प्राचीन परंपराओं के अनुसार हुआ।