देहरादून। उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्रों के आधार पर शिक्षक नियुक्तियों का बड़ा घोटाला सामने आया है। जानकारी के अनुसार, 100 से अधिक अपात्र व्यक्तियों ने फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र का इस्तेमाल कर सरकारी शिक्षक की नौकरी हासिल की। हैरानी की बात यह है कि राज्य चिकित्सा परिषद ने इन प्रमाणपत्रों को पहले ही फर्जी घोषित कर दिया था, फिर भी विभाग ने लंबे समय तक कोई कार्रवाई नहीं की।
वर्ष 2022 में स्वास्थ्य महानिदेशक ने भी दो बार मूल्यांकन रिपोर्ट भेजकर दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत कार्रवाई की संस्तुति की थी, लेकिन मामला विभागीय फाइलों में ही अटका रहा। अब नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड की ओर से जनहित याचिका दायर होने और हाईकोर्ट के सख़्त रुख के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है। कोर्ट के निर्देशों के बाद विभाग ने सभी संदिग्ध शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
दिव्यांगजन आयुक्त ने भी शनिवार को मामले की सुनवाई करते हुए उन शिक्षकों की सूची विभाग को सौंपी, जिनके प्रमाणपत्र परिषद ने फर्जी बताए थे। गढ़वाल मंडल में ऐसे 29 एलटी शिक्षकों को 15 दिन में जवाब देने को कहा गया है। वहीं माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने 14 प्रवक्ताओं और एक प्रधानाचार्य को नोटिस भेजा है।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद रविवार को भी शिक्षा विभाग के दफ्तर खुले रहे और अधिकारियों को आदेश दिया गया कि नोटिस तामील होने की सूचना तीन दिन के भीतर मुख्यालय को भेजी जाए। विभाग में प्रमाणपत्र संबंधी गड़बड़ियों का यह पहला मामला नहीं है। पहले भी फर्जी बीएड और बाहरी राज्यों से संदिग्ध डीएलएड कर नौकरी पाने जैसे मामलों की जांच चल रही है।
इस घोटाले ने न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवारों के अधिकारों का भी गंभीर हनन उजागर किया है।
