उत्तराखंड और पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। देश के अग्रणी भूवैज्ञानिकों ने ताजा अध्ययनों में यह आशंका जताई है कि क्षेत्र में दो भूगर्भीय प्लेटों के टकराव और “लॉकिंग जोन” के कारण अब किसी भी वक्त तीव्रता 7.0 या उससे ऊपर का भूकंप आ सकता है। जून में देहरादून में हुए भूवैज्ञानिक सम्मेलनों में इस बात पर गंभीर मंथन हुआ, जहां वाडिया इंस्टिट्यूट और एफआरआई में “हिमालयन अर्थक्वेक्स” और “रिस्क असेसमेंट” जैसे विषयों पर चर्चा की गई।

उत्तराखंड में 22 बार हल्के भूकंप आ चुके

भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने बताया कि कमजोर झटकों की बढ़ती आवृत्ति किसी बड़े भूकंप की चेतावनी हो सकती है। 4.0 तीव्रता के मुकाबले 5.0 तीव्रता वाला भूकंप 32 गुना ज्यादा ऊर्जा छोड़ता है, और यही ऊर्जा फिलहाल धरती के अंदर लगातार जमा हो रही है। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार, बीते छह महीनों में उत्तराखंड में 22 बार हल्के भूकंप आ चुके हैं, जिनका केंद्र चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर जैसे संवेदनशील ज़िलों में रहा।

कब, कहां और कितना – भूकंप के रहस्य

भूकंप से जुड़ी तीन अहम बातें – समय, स्थान और तीव्रता – में से वैज्ञानिक फिलहाल सिर्फ संभावित क्षेत्र का अनुमान ही लगा सकते हैं। उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में लगाए गए जीपीएस डिवाइस यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि किस क्षेत्र में ऊर्जा का जमाव सबसे अधिक है। हालाँकि, वैज्ञानिकों की मानें तो अनुमान लगाना अभी भी बेहद जटिल प्रक्रिया है।

मैदानी इलाकों में ज़्यादा तबाही की आशंका

वाडिया में हुई कार्यशाला में बताया गया कि यदि पहाड़ और मैदान दोनों में एक जैसी तीव्रता के भूकंप आते हैं, तो मैदानों में ज्यादा तबाही होगी। इसकी वजह यह है कि अधिकांश बड़े भूकंप धरती की सतह से केवल 10 किलोमीटर गहराई में आते हैं और इस वजह से उनकी प्रभावशीलता अधिक होती है।

देहरादून की ज़मीन पर विशेष अध्ययन

केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में ज़मीन की संरचना और मजबूती का विशेष अध्ययन कराने का निर्णय लिया है, जिसकी जिम्मेदारी सीएसआईआर बेंगलूरू को दी गई है। देहरादून का चयन इस परियोजना में इसलिए हुआ है क्योंकि यह भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।

बचाव के लिए सतर्कता जरूरी

आपदा प्रबंधन विभाग ने प्रदेश में 169 स्थानों पर अर्ली वॉर्निंग सेंसर लगाए हैं, जो 5.0 तीव्रता से अधिक भूकंप आने की स्थिति में 15 से 30 सेकंड पहले अलर्ट जारी कर देंगे। लोगों को मोबाइल पर “भूदेव एप” के जरिए चेतावनी मिल सकेगी।

वैज्ञानिकों की राय

“उत्तराखंड में भूगर्भीय प्लेटें लॉक हो चुकी हैं, जिससे अंदर टेक्टोनिक तनाव बढ़ रहा है। यह वही स्थिति है जो नेपाल में विनाशकारी भूकंप से पहले देखी गई थी।”
— डॉ. विनीत गहलोत, निदेशक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी

“पूरे हिमालयी क्षेत्र में बड़ी मात्रा में ऊर्जा एकत्र है, जो कभी भी अचानक निकल सकती है। यह भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है कि यह कब होगा।”
— डॉ. इम्तियाज परवेज, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर, बेंगलूरू