शंखनाद INDIA / देहरादून : क्या आप हर साल बाहर से आयी हुई मूर्तियों का इस्तेमाल करते हैं। तो जरा इस बार आप गोबर से बनी हुई मूर्तियों का इस्तेमाल कर अपने इस कामों को आसान बना सकते हैं। जरा आप ध्यान दे, बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए इस बार आप ग्रीन दीपावली मनाने का प्रण ले। जानकारी के लिए आपको बता दे, हिमवंत फाउंडेशन सोसाइटी ने गोबर से खास तरह के आइटम्स बनाए हैं। पूजा के बाद जिनकी आसानी से खाद बनाई जा सकती है। आगे पढ़े
हिमवंत फाउंडेशन सोसायटी की अध्यक्ष संगीता थपलियाल ने बताया कि इस बार कुछ खास तरह के उत्पादों के साथ ग्रीन दीपावली मनाये जाने का संदेश दिया जा रहा है। इसके तहत सोसायटी की ओर से गोबर और मैदा-लक्कड़ से गणेश जी, लक्ष्मी जी की मूर्ति सहित आकर्षक दीये, तोरण द्वार, लक्ष्मी जी के पैर सहित अन्य सजावटी आइटम्स तैयार किये जा रहा है। इन गोबर से बने उत्पादों की खासियत यह है कि दीपावली पूजन के बाद इन्हें आसानी से डिस्पोज ऑफ किया जा सकता है । पूजा के बाद इन मूर्तियों को इधर-उधर फेंकने की जगह घर के गमलों में डाल दिया जाए तो इसकी खाद बन जाती है । संगीता थपलियाल ने बताया कि इस तरह के उत्पादों से किसी तरह का कूड़ा नहीं बनेगा जबकि अक्सर दीपावली के बाद पूजा की गई गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति को पेड़ों के नीचे छोड़ दिया जाता है, क्योंकि हर वर्ष नई मूर्ति खरीदी जाती है । ऐसे में देवी-देवताओं का अपमान होता है। यही वजह है कि इस खास तरह के कांसेप्ट को तैयार किया गया,जिसके तहत ग्रीन दीपावली मनाने का संदेश दिया जा रहा है ।बताया कि गोबर से गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति के साथी शुभ लाभ, लक्ष्मी जी के पैर,दरवाजे पर लगाने वाली गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य तरह के सजावटी आइटम तो तैयार किए ही जा रहे हैं ।
साथ में हिमालय की जड़ीबूटी से खास तरह की धूप भी बनाई जा रही है जिससे घरों में सूक्ष्म हवन किया जा सकता है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वही लक्ष्मी जी के पैर अक्सर कागज के होने की वजह से घरों के फर्श पर चिपक जाते हैं, लेकिन गोबर से बने इन पैरों को पूजा के बाद आसानी से खाद के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि रेडी टू बर्न दीये भी यहां तैयार किए जा रहे हैं। जिनके जलने के बाद उनकी खाद बनाई जा सकती है।
मिलेगा महिलाओं को रोजगार,बच्चों को संरक्षण
संगीता अपने इस कांसेप्ट से कई जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार भी दे रही है। दरअसल,वन स्टॉप सेंटर में हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद करते हुए संगीता ने इसे भी अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। यही वजह है कि वन स्टॉप सेंटर से जॉब छोड़ने के बाद भी वह इन महिलाओं की मदद कर रही है। हिमवंत फाउंडेशन सोसाइटी के माध्यम से कई ऐसी घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद कर रही हैं। साथ ही उनके बच्चों का भी संरक्षण संरक्षण कर रही है। इन दिनों ये महिलाएं यहाँ दीये,मूर्तियां आदि उत्पाद तैयार कर रही हैं। वहीं इन मूर्तियों को पूरी तरह से ईको-फ़्रेंडली बनाने के लिए इनमें गेरू का रंग बना इस्तेमाल किया जा रहा हैं।