चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बहुत बड़ा झटका दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है। अब निर्वाचन को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करे। शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।
चुनावी प्रक्रिया में ‘ सफाई’ को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे तीन महीने की अथक मेहनत लगी है. सुप्रीम कोर्ट के 232 पेज के फैसले में CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने 158 पेज लिखे हैं और बाकी जस्टिस संजीव खन्ना ने लिखे हैं. CJI चंद्रचूड़ ने अपने अलावा जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए फैसला लिखा है. हालांकि, सभी पांचों जजों ने एक राय से चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया.
RTI एक्ट का उल्लंघन करती है चुनावी बॉन्ड की योजना
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है। चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जिसका दूरगामी असर हो सकता है, खासकर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर मोदी सरकार को जोर का झटका लगा है
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एकराय में कहा है कि राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला चन्दा कौन और कितना दे रहा है. जनता को यह जानने का अधिकार है. मोदी सरकार का कहना था कि चुनावी चंदे से जनता को क्या मतलब. मोदी सरकार इस बात के खिलाफ थी कि जनता को यह पता लगे कि किस सेठ ने कब कब किस दल को कितना पैसा दिया. पिछले दस सालों में करीब 9 हजार करोड़ का चुनावी चन्दा देश के सेठों ने राजनीतिक दलों को दिया. जिसमें से 90 फीसदी बीजेपी को गया है. कोर्ट में बताया गया कि देश के सेठ राजनीतिक दलों को चन्दा देकर सरकारों से अपने मनमाफिक पालिसी बनवा रहे हैं. जस्टिस संजीव खन्ना के इस मामले में विचार अलग थे, लेकिन निर्णय सर्व सम्मत इस पर हुआ. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को मोदी सरकार के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली लेकर आए थे. उस वक्त दलील दी गई थी कि इस स्कीम से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले काले धन पर रोक लगेगी, लेकिन बड़ी चालाकी से पैसे देने वाले का नाम गुप्त रखने का इसमें प्रावधान किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताकर बैन कर दिया है और खरीदारों की लिस्ट सार्वजनिक करने के एसबीआई को आदेश दिए हैं.