क्या जांच की आशंका के चलते वीआरएस लेना चाहते हैं बद्री – केदार मंदिर                     समिति के चर्चित पूर्व सीईओ बीडी सिंह?

बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति में वर्षों तक मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) की कुर्सी कब्जाए रहे भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अधिकारी बीडी सिंह एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इस बार वे आनन – फानन में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने को लेकर चर्चा में हैं। जिस अंदाज में उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृति की फाइल चल रही है, उससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या वो किसी जांच की आशंका के चलते यह कदम उठा रहे हैं।

इस वर्ष मंदिर समिति के सीईओ पद से बीडी सिंह का ट्रांसफर राजाजी नेशनल पार्क में उप निदेशक के पद पर हुवा था। कुछ दिन पूर्व उनका ट्रांसफर राजाजी पार्क से वन मुख्यालय में किया गया। इस बीच पता चला है कि बीडी सिंह ने फॉरेस्ट विभाग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया है। उनके स्वैच्छिक आवेदन के पत्र को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक की ओर से अपर प्रमुख वन संरक्षक बीपी गुप्ता द्वारा मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी को 15 अक्टूबर को एक पत्र पत्र प्रेषित किया गया। पत्र में कहा गया कि बीडी सिंह के द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का प्रत्यावेदन दिया गया है। अत: मंदिर समिति में कार्यरत रहने के दौरान बीडी सिंह के संबंध में पांच बिंदुओं पर सूचना तत्काल उपलब्ध कराई जाए।

नियमानुसार यह सूचना मंदिर समिति के सीईओ से मांगी गई थी और प्रोटोकॉल के तहत सीईओ की तरफ से ही यह सूचना प्रमुख वन संरक्षक को भेजी जानी थी। लेकिन यह बीडी सिंह के प्रभाव का ही असर था कि जो सूचना सीईओ के स्तर से भेजी जानी थी वह मंदिर समिति के उप मुख्यकार्यकारी सुनील तिवाड़ी की तरफ से भेज दी गई। जबकि शासन अथवा इस प्रकार के पत्राचार के लिए सीईओ ही अधिकृत अधिकारी हैं।

इस प्रकरण में पत्र का जवाब जिस तेजी से दिया गया वो भी आश्चर्यजनक है। वन मुख्यालय से पत्र 15 अक्टूबर को आया और डिप्टी सीईओ तिवाड़ी ने 17 अक्टूबर को बीडी सिंह को एनओसी जारी कर दी और उनके विरूद्ध किसी प्रकार की कोई कार्यवाही अथवा अवशेष आदि के बारे में क्लीन चिट दे दी।

जबकि यह सर्वविदित है कि मंदिर समिति में शासन स्तर से अपर आयुक्त गढ़वाल की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की गई है, जो विभिन्न मामलों की जांच कर रही है। जांच के बिंदुओ में मंदिर समिति में 34 कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ती दिए जाने का मामला भी है, जो बीडी सिंह के कार्यकाल का है। ऐसे में डिप्टी सीईओ तिवाड़ी द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर बीडी सिंह को एनओसी दिए जाने से कई सवाल उठ रहे हैं।

विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक बीडी सिंह का जब मंदिर समिति से ट्रांसफर हुआ था, तब उन्होने इसे रोकने के लिए काफी प्रयास किए थे। लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो सके। अपनी लंबी पहुंच के बल पर उन्होने अपने स्थानांतरण आदेश में बाकायदा यह लिखा दिया था कि यह आदेश यात्रा सीजन समाप्त होने के बाद प्रभावी होगा और वे एक माह की लंबी छुट्टी पर चले गए।

सूत्रों के मुताबिक बीडी सिंह ने मंदिर समिति से ट्रांसफर होने के बाद केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना के तहत चल रहे मास्टर प्लान के कार्यों में डेपुटेशन पर जाने की भारी कोशिश की। अपने संपर्कों के बल पर उन्होने इसके लिए फाइल भी चला दी थी। लेकिन उनका ये प्रयास भी असफल रहा और उनकी फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

उल्लेखनीय है कि आईएफएस अधिकारी बीडी सिंह विगत करीब 11 वर्षो से बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति में नियम विरूद्ध सीईओ की कुर्सी पर जमे रहे। आमतौर पर कोई भी अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर तीन साल की अवधि तक ही रह सकता है। लेकिन बीडी सिंह ने लगातार ग्यारह वर्षो तक सीईओ की कुर्सी पर रह कर एक नया रिकॉर्ड बनाया। भाजपा हो अथवा कांग्रेस किसी की भी सरकार रही हो, किंतु बीडी सिंह की कुर्सी बरकरार रही है।

बताया जाता है कि मंदिर समिति के सीईओ रहते हुए बीडी सिंह ने बड़ी-बड़ी हस्तियों से जबरदस्त संपर्क बनाए। यह भी कहा जाता है कि बीडी सिंह ने मंदिर समिति के कामकाज या प्रशासन चलाने में दिलचस्पी दिखाने के बजाय हस्तियों से संपर्क बनाने में ज्यादा विश्वास रखा। इस कारण मंदिर समिति की कार्यप्रणाली में कई गड़बड़िया भी पैदा हुईं। कर्मचारी बेलगाम हो गए। कर्मचारियों की नियुक्ति से लेकर वेतन बड़ोत्तरी, पदोन्नति तक में कोई मानक नहीं रहे।

बीडी सिंह के कार्यकाल में मंदिर समिति में उनकी तूती बोलती रही। बताया जाता है कि उनके कार्यकाल के दौरान जो भी अध्यक्ष नियुक्त रहे वो पूरी तरह से बीडी सिंह के अनुरुप ही चलते रहे। किसी अध्यक्ष ने कभी बीडी सिंह को हटाने की कोशिश भी की तो वो असफल ही साबित हुए।

सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश के अधिकांश नौकरशाह यह मान कर चल रहे थे कि चुनाव बाद कांग्रेस की सरकार गठित होगी। इस लिहाज से कई नौकरशाहों ने कांग्रेस के नेताओं के चक्कर काटने ही शुरू नहीं कर दिए थे, बल्कि उन्होने चुनाव में कांग्रेस नेताओं की पैंसे से लेकर हर तरह की मदद की। सूत्रों के मुताबिक चुनावों के बाद फिर से भाजपा की सरकार बनने पर कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने पार्टी हाईकमान के सम्मुख बीडी सिंह पर भी ऐसे ही कुछ आरोप लगाए।

बीडी सिंह पर यहां तक आरोप लगे कि उन्हें पूरा यकीन था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी। इसलिए चुनाव परिणाम आने से पहले वो एक महीने की छुट्टी चले गए। बीडी सिंह यहां मात खा गए। उनका ये आंकलन गलत साबित हुआ और उनको मंदिर समिति से रुखसत होना पड़ा।

सूत्रों का यह भी कहना है कि ट्रांसफर होने के बावजूद बीडी सिंह का मंदिर समिति से मोह नहीं छूट पा रहा है। वे अभी भी वीवीआईपी दर्शनार्थियों से अपने संबंधों और उनके साथ केदारनाथ व बदरीनाथ जाने का लोभ नहीं छोड़ पा रहे हैं। विगत दिनों रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी केदारनाथ व बदरीनाथ धाम की यात्रा पर आए थे। लेकिन सीईओ पद से हटने के बावजूद बीडी सिंह उनकी सारी यात्रा की व्यवस्था बनाने में ही नहीं जुटे रहे, बल्कि उनके अमले के साथ दोनों धामों की यात्रा में भी साथ रहे।

इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के चर्चित गुप्ता बंधुओं में से एक भाई ने दल बल के साथ केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने से पूर्व वहां की यात्रा की। इस यात्रा में बीडी सिंह पूरी तरह से साथ रहे। सूत्रों के अनुसार केदारनाथ धाम में उस समय वहां मौजूद भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने गुप्ता बंधु से कहा कि वो यात्रा पर आए हैं तो यहां मंदिर समिति की ओर से कोई बड़ा प्रोजेक्ट शुरू कराने का संकल्प लें। इस पर गुप्ता बंधु ने जवाब दिया कि उन्होंने बीडी सिंह के कहने पर केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों के संगठन के भवन निर्माण के लिए सहयोग का संकल्प लिया है। गुप्ता बंधु के इस जवाब से मंदिर समिति के पदाधिकारी से लेकर अन्य श्रद्धालू तक हक बक रह गए थे कि बीडी सिंह ने मंदिर समिति को सहयोग दिलाने के बजाय तीर्थ पुरोहितों के संगठन के लिए मदद कराई।