बनासकांठा (गुजरात)। कभी गुजरात का सबसे पिछड़ा जिला माने जाने वाला बनासकांठा आज एशिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों में शुमार हो गया है। कभी यह इलाका कृषि पिछड़ेपन और बेरोजगारी के कारण युवाओं के पलायन के लिए बदनाम था, लेकिन आज यहां की महिलाएं सहकारी दुग्ध उत्पादन के जरिये आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन की नई कहानी लिख रही हैं।

बनास डेयरी जैसे सहकारी संघों ने इस जिले की तस्वीर ही बदल दी है। आज यहां दुग्ध उत्पादन का पूरा कारोबार मुख्य रूप से महिलाओं के हाथों में है। घर की महिलाएं खेती के साथ-साथ गाय-भैंसों का पालन करती हैं और दूध बेचकर हर महीने हजारों से लेकर लाखों रुपये तक कमा रही हैं। बनास डेयरी से जुड़ी कई महिलाएं हर वर्ष लाखों और कुछ तो करोड़ों रुपये तक की आय अर्जित कर रही हैं।

एक दुग्ध उत्पादक महिला ने बताया कि वह एमए, बीएड हैं, लेकिन विवाह के बाद नौकरी के बजाय डेयरी व्यवसाय को अपनाया। इस व्यवसाय में वे स्वयं की मालिक हैं और तनावमुक्त जीवन जी रही हैं। उन्होंने बताया कि केवल दुग्ध उत्पादन से वे हर वर्ष 30 से 35 लाख रुपये तक कमा लेती हैं। वहीं एक अन्य महिला, जिनके पास सौ से अधिक गायें और भैंसें हैं, ने बताया कि वे चार अन्य परिवारों की मदद से हर साल एक करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करती हैं।

इन महिलाओं ने न केवल ऊंची नौकरियों की बराबरी कर ली है, बल्कि अपने परिवारों की आर्थिक रीढ़ बन चुकी हैं। पारंपरिक परिवारों में जहां निर्णय लेने की शक्ति पुरुषों के पास होती थी, वहीं अब महिलाएं आर्थिक योगदान के चलते सम्मान और अधिकार दोनों में बराबरी पा रही हैं। एक महिला ने हंसते हुए कहा, कमाऊ पूत सबको प्यारा होता है, अब हम वही पूत बन गई हैं।

बनास डेयरी के मैनेजिंग डायरेक्टर संग्राम आर. चौधरी के अनुसार, सहकारी संघ मॉडल निजी कंपनियों की तरह मुनाफाखोरी पर नहीं, बल्कि किसानों की तरक्की पर केंद्रित है। डेयरी कुल कमाई का केवल 18 प्रतिशत संचालन पर खर्च करती है, जबकि 82 प्रतिशत सीधा किसानों के खाते में जाता है। हर साल बोनस के रूप में करोड़ों रुपये बांटे जाते हैं।

बनास डेयरी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर ब्रिगेडियर (रि.) विनोद बाजिया ने बताया कि जिले की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण कृषि सीमित है, इसलिए पशुपालन ही यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना। सहकारी मॉडल की वजह से किसानों और महिलाओं को बिचौलियों से मुक्ति मिली और उनकी आमदनी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। आज बनासकांठा न केवल गुजरात बल्कि पूरे भारत के लिए ग्रामीण विकास का आदर्श बन चुका है।