बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पांच दशकों से अधिक लंबा राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव, पाला बदलने और चौंकाने वाली वापसीयों से भरा रहा है। कई बार राजनीतिक तौर पर खत्म घोषित किए जाने के बावजूद नीतीश हर बार नए अंदाज में उभरकर अपनी प्रासंगिकता साबित करते रहे हैं।

मंडल राजनीति से निकले नेताओं में उन्होंने अलग पहचान बनाई और शासन सुधार तथा विकास को प्राथमिकता दी। हालांकि, विपक्षी दल उन्हें अवसरवादी और ‘पलटू राम’ कहकर निशाना साधते रहे, लेकिन कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक सुधारों के कारण उन्होंने ‘सुशासन बाबू’ की छवि भी मजबूत की।

2024 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू ने सीट-टू-सीट आधार पर बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया और बराबर सीटें जीतीं। यही कारण रहा कि केंद्र में सरकार बचाने के लिए बीजेपी को उनके समर्थन की जरूरत पड़ी।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद नीतीश ने सरकारी नौकरी छोड़कर जेपी आंदोलन का रास्ता चुना। 1985 में पहली बार विधायक और 1989 में सांसद बने। लालू प्रसाद से अलग होकर उन्होंने समता पार्टी बनाई और बीजेपी के साथ गठबंधन कर अपना राजनीतिक विस्तार किया।

बाद में समता पार्टी का विलय जेडीयू में हुआ और 2005 में बिहार में नीतीश युग की शुरुआत हुई। शुरुआती कार्यकाल में कानून-व्यवस्था, सड़क-बिजली और सामाजिक न्याय संबंधी पहल ने उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाई।

हालांकि उनकी राजनीति गठबंधन बदलने के लिए भी जानी गई। 2013 में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ा, 2015 में महागठबंधन के साथ आए, 2017 में फिर बीजेपी के साथ लौटे। 2022 में आरजेडी-कांग्रेस के साथ नई सरकार बनाई और 2024 के आसपास एक बार फिर एनडीए में वापस चले गए।

नीतीश कुमार का सफर भारतीय राजनीति में उनकी अद्भुत अनुकूलन क्षमता और रणनीतिक समझ का प्रमाण माना जाता है।