डा० राजेंद्र कुकसाल/लेखक – कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ।
उद्यान विभाग की उदासीनता के कारण राज्य में घट रहा है अदरक उत्पादन।
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम योजना के तहत वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, प्रोजेक्ट के अन्तर्गत टेहरी जनपद को अदरक में पहिचान दिलाने की घोषणा राज्य सरकार द्वारा की गई है।
इस योजना के अंतर्गत टेहरी जनपद में अदरक प्रसंस्करण हेतु 9 यूनिट लगनी प्रस्तावित है।
माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह महत्वपूर्ण प्रयास है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय बाजार, स्थानीय उत्पाद, स्थानीय आपूर्ति को बढ़ावा देना है।
टेहरी जनपद अदरक उत्पादन में राज्य में अग्रणीय जनपदों में से एक है प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना का अपेक्षित लाभ स्थानीय लोगों को तभी मिलेगा जब अदरक का उत्पादन बढ़ेगा और तभी टेहरी जनपद की अदरक में पहिचान बनेगी।
*समय पर अदरक का प्रमाणिक व ट्रुत्थफुल बीज न मिल पाने तथा स्थानीय अदरक बीज उत्पादकों को योजनाओं में मिलने वाली आर्थिक मदद न देने के कारण जनपद में अदरक उत्पादन लगातार घट रहा है*।
विभाग द्वारा योजनाओं में गाइडलाइंस का अनुपालननहीं किया जा रहा है
1. योजनाओं में गुणवत्ता बनाए रखने हेतु सभी निवेश यथा बीज दवा खाद आदि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि शोध केन्द्रों, भारतीय एवं राज्य बीज निगमों से क्रय करने के निर्देश दिए गए हैं।
2. योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने तथा पारदर्शिता के उद्देश्य से कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में जमा करने का प्रावधान है।
उद्यान विभाग योजनाओं में आवंटित धन से टेंडर प्रक्रिया दिखाकर निम्न स्तर के निवेश (बीज दवा खाद आदि) क्रय कर कृषकों को मुफ्त में या कम कीमत पर बांटने का कार्य कर रहा है।
#टेहरी जनपद, आगाराखाल के श्री सुरेन्द्र सिंह कन्डारी जी का खराब अदरक बीज के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री जी से अनुरोध- दिनांक 18 अगस्त 2021
आदरणीय #पुष्कर सिंह धामी जी ,माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार… महोदय निवेदन है कि आगरा खाल क्षेत्र अदरक उत्पादन के लिए अपना विशेष महत्व रखता है !विगत कई वर्षों से कृषि विभाग द्वारा ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाने वाला अदरक बीच बेहद घटिया गुणवत्ता का है कृषि विभाग अदरक बीज माफियाओं के चंगुल में उलझा हुआ है कृपया संज्ञान लें#
अदरक उत्पादकों को अदरक बीज उत्पादन में योजनाओं से लाभान्वित कर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास नहीं किए गए।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकडों के अनुसार उत्तराखंड में 4876 हैक्टियर क्षेत्र फल में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है। टेहरी जनपद में 2019 – 20 में 1490 हैक्टेयर क्षेत्र फल में अदरक की कास्त की गई जिससे 14872 मैट्रिक टन अदरक उत्पादन प्राप्त हुआ। विभागीय आंकड़ों के अनुसार बर्ष 2016 से 2020 तक अदरक उत्पादन में कोई भी बढ़ोतरी नहीं दर्शीई गई है, जिसका मुख्य कारण समय पर उच्च गुणवत्ता का अदरक बीज न मिल पाना है, जबकि विभागीय योजनाओं में अदरक बीज खरीद में धनराशि सैकड़ों गुना बढ़ा दी गई है।
*हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए*।
अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-
1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल ।
2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।
3- डा० वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर , नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश ।
उद्यान विभाग विगत 20 – 30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम ,मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित / Truthful बीज के नाम पर रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर 5 से 10 करौड रुपये का अदरक प्रति बर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को योजनाओं में आधी कीमत या मुफ्त में अदरक बीज के नाम पर बांटता आ रहा है ।
अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) पूर्वोत्तर राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग – 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर, राज्य में कृषकों को योजनाऔं के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है , जिस पर 50 -70 प्रतिशत का अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है।
अदरक बीज की खरीद पर कई वार सवाल उठे हैं , तथा विवाद भी हुए हैं, पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर, या बीज आपूर्ति कर्ता को ब्लेक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।
अदरक बीज आपूर्ति कर्ता / ठेकेदार( दलाल ) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं , और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा /Audit से बचने के लिए इनके पूर्व में इन दलालों द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता था जिस पर बीज आपूर्ति करने वाले इन समितियों को 5 – 10 % तक कमिशन देते थे ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं , और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता रहा है ।
समितियां के माध्यम से क्रय करने पर जब सवाल उठने लगे तो वर्तमान में टैन्डर प्रक्रिया से अदरक बीज क्रय किया जाने लगा।
भारत सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार योजनाओं में क्रय किए जाने वाला बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय , केन्द्र या राज्य के बीज निगमों से ही क्रय करने के निर्देश है किन्तु उत्तराखंड में ऐसा नहीं होता अधिक तर बीज कमिशन के चक्कर में निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं।
कृषकों को योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरबरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी. वी. टी. के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये।
कृषकों को योजनाओं में मिलने वाले अनुदान का डी०बी०टी० के माध्यम से भुगतान सम्बन्धित भारत सरकार के आदेशों का नहीं हो रहा अनुपालन।
उत्तरप्रदेश , हिमाचल आदि सभी राज्यों में बर्ष 2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान डी बी टी के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है। इन राज्यों में पंजीकृत/चयनित कृषक भारत सरकार/राज्य सरकार के संस्थानो /पंजीकृत बीज विक्रेताओं जो कृषि विभाग से पंजीकृत हों से स्वेच्छानुसार एम आर पी से अनधिक दरों पर नगद मूल्य पर क्रय कर क्रय रसीद सम्बंधित विभाग से भुगतान प्राप्त करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है सत्यापन के बाद धनराशि कृषकों के बैंक खातों में विभाग द्वारा डाल दी जाती है।
अधिकतर अदरक उत्पादकों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है, विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों मै सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं , जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है। ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों मै बेचते हैं।
यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारौ को उपलब्ध कराये तो इससे दोहरा लाभ होगा, एक तो कास्तकारौ को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा साथ ही कास्तकारौ को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी ।
टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत ,आगराखाल के अदरक उत्पादकों ने स्थानीय अदरक बीज से उत्पादन कर इस बर्ष माह अगस्त में ही एक करोड़ से अधिक का अदरक बेच दिया। इस क्षेत्र के कृषक कई दशकों से अदरक की व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं।
धमांदस्यू,दोणी व कुंजणी पट्टी के कसमोली, आगर, सल्डोगी, द्यूरी, कुखुई, चल्डगांव, कटकोड़, नौर, बसुई, पीडी, मठियाली, तिमली, मुंडाला, ससमण, बेराई, बांसकाटल, कोटर, रणाकोट, कुखेल, खनाना, जयकोट, जखोली, मैगा, लवा, तमियार गांवों के कृषक अदरक उत्पादन करते हैं।
अधिकांश प्रगतिशील कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं, स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है ,किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई फरवरी में हो जाती है ,जब कि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल मई तक हो पाती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है , साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं ।
*अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयंम अदरक का बीज उत्पादित करते हैं टेहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल , कस्मोली ,आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मेंने स्वंम वैठक की जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष ‌श्री हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष श्री कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं काफी रहती है* ।
*देहरादून* जनपद के विकास नगर व सहसपुर क्षेत्रों में 26 अक्टुबर 2020 को पुराने सहयोगियों श्री जगत राम सेमवाल प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र लांघा एवं श्री इन्दु भूषण कुमोला प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र विकास नगर के सहयोग से लांघा एवं भाटोवाली क्षेत्र के किसानों द्वारा अदरक बीज उत्पादन प्रक्षेत्र का भ्रमण तथा कुछ अदरक बीज उत्पादकों श्री शांति सिंह, श्रीचन्द श्री फागुन सिंह ,श्री भान सिंह- श्री संदीप चौहान आदि से वार्ता की।
इन क्षेत्रों में किसानों द्वारा, परंम्परागत रूप से दशकों से अदरक बीज का उत्पादन किया जा रहा है। क्षेत्र के अदरक बीज उत्पादकों का कहना था कि पहले हिमाचल से अदरक का बीज लाते थे या अपना उत्पादित किया हुआ अदरक ही बोते थे जिससे उपज अच्छी मिलती थी जब से योजनाओं का बीज बोना शुरू किया कई तरह की बीमारियों खेतों में आगयी है जिससे उपज काफी कम हो गई है जिसकारण वर्तमान में अदरक उत्पादन क्षेत्र में कम हो रहा है।
*चम्पावत* जिले के 25 सीमांत गांवों में भारत सरकार की समेकित सहकारी विकास योजना के अंतर्गत 12 बहुद्देशीय सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय अदरक उत्पादकों से अदरक बीज उत्पादन कराया जा रहा है। वर्तमान में 200 एकड़ भूमि में एक हजार कुंतल अदरक की वुवाई कराई गई है जो कि एक शानदार पहल है। इस कार्य में डा० परमार बागवानी विश्व विद्यालय नौणी सोलन हिमाचल प्रदेश के बैज्ञानिकों का भी सहयोग लिया जा रहा है।
योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों को योजनाओं का पूरा लाभ मिलेगा सोचना बेमानी है।
विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है ,कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके।
यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।
राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
कहीं प्रधानमंत्री जी की यह महत्वाकांक्षी योजना भी अन्य योजनाओं की तरह मशीन व अन्य निवेश खरीद फरोख्त तक ही न रह जाए।

मंशा किसानों को वक्त पर खाद-बीज मुहैया कराकर उत्पादन में बढ़ोतरी की और सिस्टम का हाल यह कि वह वक्त पर बीज ही मुहैया नहीं करा पा रहा। उत्तराखंड में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है। 2010 से शुरू की गई इस पहल के दरम्यान अब तक केवल दो बार ही राज्य में अदरक बीज की पूरी आपूर्ति हो पाई। उस पर हैरानी की बात ये कि इस बेपरवाही के लिए किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया गया। ऐसे में अदरक को आर्थिकी से कैसे जोड़ा जाएगा, स्वत: ही अंदाज लगाया जा सकता है।
राज्य में 4822 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की खेती होती है, जिसमें पर्वतीय जिले मुख्य हैं। उत्तराखंड बनने के बाद प्रदेश में उद्यान विभाग की ओर से अदरक का बीज पूर्वाेत्तर समेत अन्य राज्यों से मंगाकर किसानों को दिया जाता था। उत्पादन बढ़ाने के मद्देनजर 2010 में किसानों को अदरक का शोधित बीज मुहैया कराने की पहल की गई। तब उत्तर प्रदेश फल एवं भेषज सहकारी संघ के माध्यम से अदरक बीज की पांच हजार कुंतल और हल्दी के 2700 कुंतल बीज की आपूर्ति की गई।
सूत्रों के अनुसार इसके अगले वर्ष से टेंडर प्रक्रिया के जरिये फर्माें को आमंत्रित कर इनके माध्यम से शोधित बीज देने का निर्णय लिया गया, लेकिन 2016 तक कभी भी सप्लाई पूरी नहीं की गई। हर बार ही बीज की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे। यही नहीं, कई मर्तबा संबंधित फर्म शर्तें पूरी नहीं कर पाई। बाद में इनमें कुछ ढील दी गई और 2017 में जिस फर्म के नाम यह टेंडर छूटा, उसने अदरक व हल्दी की पूरी आपूर्ति की। इससे उम्मीद बंधी कि व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन 2018 में 2700 कुंतल के सापेक्ष 1600 कुंतल बीज की आपूर्ति हो पाई।

सूखे की मार झेलने वाले किसानों के लिए अदरक की खेती एक उम्मीद थी और इसी उम्मीद पर उन्होंने अदरक लगाने के लिए खेत तैयार किए, लेकिन सरकारी बीज की कमी से ये भी नाउम्मीदी में बदल रही है। उन्हें जरूरत भर के लिए भी बीज नहीं मिल पा रहा है, मिल भी रहा है तो अधिक रकम खर्च करनी पड़ रही है।
पहले तो उद्यान विभाग समय पर बीज उपलब्ध नहीं करा पाया और जब दस दिन पहले बीज आए भी, तो कम मात्रा में मिले। डिमांड 290 क्विंटल की थी, लेकिन मिला महज 116 क्विंटल। इस कारण किसानों को जरूरत के हिसाब से बीज नहीं मिल सके। विभागीय बीज 30 रुपये और बाजार का बीज 55 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रहा है। विभागीय बीज की प्रमाणिकता भी अधिक होती है। पिछले साल जिले को 300 क्विंटल बीज 35.40 रुपये की दर से मिला था। अदरक की फसल जिले की प्रमुख नकदी फसल है। करीब 304 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की बुवाई होती है। पिछले साल 2349 क्विंटल अदरक का उत्पादन हुआ।
     आगरा खाल क्षेत्र अदरक उत्पादन के लिए अपना विशेष महत्व रखता है !विगत कई वर्षों से कृषि विभाग द्वारा ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाने वाला अदरक बीच बेहद घटिया गुणवत्ता का है कृषि विभाग अदरक बीज माफियाओं के चंगुल में उलझा हुआ है कृपया संज्ञान लें

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