शंखनाद INDIA/ देहरादून

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का आज 57वां जन्मदिन हैं| जन्मदिन के अवसर पर सीएम तीरथ सिंह रावत को ढेरों शुभकामनाएं भी मिल रही है| देश के प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने भी सीएम को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं|इसके अलावा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी सीएम को जन्मदिन के अवसर पर बधाइयां दी है| सीएम के जन्मदिवस के मौके पर आज प्रदेश में कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है| जहां सीएम के ज्मदिवस को लेकर जश्न मनाया जाएगा|

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का जन्म नौ अप्रैल 1964 को पौड़ी गढ़वाल के सीरों, पट्टी असवालस्यूं में हुआ था। वह फरवरी 2013 से दिसंबर 2015 तक प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे। चौबट्टाखाल से विधायक चुने गए। अभी वह गढ़वाल लोकसभा से सांसद हैं। 2019 के चुनाव में उन्हें हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी भी बनाया गया। अब वह उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी संभाल रहे हैं| तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड की सीएम की कुर्सी तक पहुंचने में कई साल लगे| अपने राजनीतिक सफर की कई छोटी बड़ी चुनौतियां का सामना करने के बाद आज वह इस पद पर आसीन हो पाए हैं| आइये जानते हैं उनके राजनीतिक सफर के बारे में:

राजनीतिक सफर:

सीएम तीरथ सिंह रावत ने गढ़वाल विवि के बिड़ला परिसर श्रीनगर से छात्र राजनीति शुरू की। वर्ष 1992 में वह सबसे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से गढ़वाल विवि बिड़ला परिसर श्रीनगर के छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद वह अभाविप के प्रदेश संगठन मंत्री, भाजयुमो में प्रदेश उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे।

वर्ष 1997 में वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य के सदस्य निर्वाचित हुए। पृथक राज्य उत्तराखंड का गठन होने पर वर्ष 2000 में राज्य की अंतरिम सरकार में तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के पहले शिक्षा मंत्री बने। वर्ष 2007 में भाजपा प्रदेश महामंत्री, प्रदेश सदस्यता प्रमुख, आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष चुने गए।

वर्ष 2012 में विधानसभा चौबट्टाखाल से विधायक चुने जाने के बाद वर्ष 2013 में उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने प्रदेश अध्यक्ष, प्रभारी और प्रत्याशी के रुप में शत-प्रतिशत परिणाम दिए। तीरथ को 2013 में भाजपा के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। और 2015 में उन्हें प्रदेश की राजनीति से हटाकर राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व दे दिया गया।

वर्ष 2017 में सिटिंग विधायक होते हुए टिकट कटने के बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी सौंपी। भूमिका निभाई। लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी ने तीरथ को गढ़वाल सीट से प्रत्याशी बनाए जाने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के प्रभारी का दायित्व भी सौंपा। उन्होंने अपनी जीत के साथ हिमाचल प्रदेश की चारों सीटें जिताकर पार्टी में खुद के कद को और मजबूत किया। आज तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी पर बैठकर अपनी अहम जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं|

उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी को लेकर राजनीति में कई उथल पुथल मची| सीएम की कुर्सी को लेकर हर तरफ सियासत गर्मायी हुई थी| पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद से ही अगले सीएम को लेकर राज्य में तमाम चर्चाएं होने लगी| कई बड़े नेताओं के नाम सीएम पद के लिए सामने आए| लेकिन संघ की पृष्ठभूमि के साथ-साथ जातीय व क्षेत्रीय समीकरण को देखते हुए पार्टी ने तीरथ सिंह पर सीएम बनाने का फैसला किया| सीएम तीरथ सिंह रावत जमीनी नेता के तौर पर जाने जाते हैं और संगठन और सरकार दोनों में उनका अनुभव काफी अच्छा रहा है| और उनकी यही काबिलियत उनके सीएम बनने के पक्ष में गई है|  और पार्टी ने उन्हें राज्य के सीएम की अहम जिम्मेदारी सौंप दी| हालांकि, तीरथ सिंह रावत के  आगे के सफर में उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं|

सीएम के सामने कई चुनौतियां:

उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं| ऐसे में तीरथ सिंह रावत को सत्ता की कमान इसीलिए सौंपी गई है जिससे विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीतकर सत्ता में एक बार फिर ला पाने में सक्षम हों| इससे पहले भी बीजेपी दो बार अपने सीएम को बदलने का प्रयोग कर चुकी है, लेकिन सफल नहीं रही है, इसीलिए बीजेपी के लिए यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि महज एक साल का ही समय बाकी है और पार्टी  को राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत बनाना है|

हालांकि, बीजेपी ने इससे पहले जो पिछली सरकारों में बदलाव किया था, उसमें उन्हें महज चार और 6 महीने का समय मिला था| इस बार एक साल का वक्त बाकी है विपक्ष के पास हरीश रावत को छोड़कर कोई दूसरा बड़ा चेहरा नहीं है, ऐसे में  उन्हें पार्टी के खिलाफ बने माहौल के बीजेपी के पक्ष में तब्दील करना होगा|

उत्तराखंड की सियासत में कुमाऊं और गढ़वाल के बीच सियासी लड़ाई किसी से छिपी नहीं है|  ऐसे में तीरथ सिंह के सामने कुमाऊं और गढ़वाल के बीच बैलेंस बनाए रखने की भी बेहद बड़ी चुनौती सामने है| जिसका संतुलन न बनाए रखने के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी कुर्सी गवांनी पड़ी है| हालांकि अब देखने वाली बात यह होगी कि तीरथ सिंह रावत सीएम की कमान संभालते हुए गढ़वाल और  कुमाऊं के साथ कैसे संतुलन साधकर रखते हैं|  इसके अलावा कांग्रेस से बीजेपी में आए हुए नेताओं के साथ बैलेंस बनाए रखना भी उनके लिए बेहद बड़ी चुनौती होगी और साथ ही बीजेपी के विधायकों की नाराजगी को दूर करने की कवायद करनी होगी|

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