उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा 05 अक्टूबर 2025 को आयोजित होने वाली सहकारी निरीक्षक वर्ग -2 / सहायक विकास अधिकारी (सहकारिता ) की लिखित परीक्षा को स्थगित करने की सूचना 01 अक्टूबर को जारी की गयी. आयोग द्वारा जारी सूचना में – “इस परीक्षा में सम्मिलित होने अभ्यर्थियों के निवेदन / फीडबैक ” को परीक्षा स्थगित करने का कारण के तौर पर दर्शाया गया !

21 सितंबर को उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा अयोजित होने वाली स्नातक स्तरीय परीक्षा का पेपर लीक होने और उसके खिलाफ हुए युवाओं के आंदोलन के बाद ये पहली परीक्षा होनी थी. लेकिन परीक्षा आयोजन से चार दिन पहले “अभ्यर्थियों के निवेदन / फीडबैक” के बहाने के साथ, परीक्षा स्थगन, थोडा अटपटा लगा !

इसके दो दिन बाद यानि 03 अक्टूबर को एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की सूचना आई. अखबारों में प्रकाशित ब्यौरे के अनुसार सुरेन्द्र कुमार नाम के उक्त व्यक्ति ने स्थगित की गयी परीक्षा के लिए तीन आवेदन पत्र भरे और तीनों में पिता के नाम की स्पेलिंग्स और मोबाइल नंबर अलग-अलग था. अखबारों में प्रकाशित ब्यौरे के अनुसार उसने तीनों फार्मों में जन्मतिथि, हाईस्कूल से लेकर स्नातक की परीक्षा के अलग-अलग वर्ष भरे, फर्जी रोजगार पंजीकरण प्रमाण पत्र, फर्जी ओबीसी प्रमाण पत्र जमा किया . यह भी सामने आया कि उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुवा के रहने वाले उक्त आरोपी ने उत्तराखंड का फर्जी स्थायी निवास प्रमाण पत्र भी आवेदन फॉर्म के साथ लगाया.

यह पूरी कहानी सुनने से लगता है कि पहले से सुनी-सुनाई कहानी पुनः दोहराई जा रही हो. याद कीजिये उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित 21 सितम्बर की स्नातक स्तरीय परीक्षा. इस परीक्षा में पेपर आधे घंटे बाद हॉल से बाहर आ गया. शुरूआत में तो उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष जी एस मर्तोलिया, प्राशसनिक अफसरों, भाजपा सरकार के मंत्री-विधायकों ने इसे पेपर लीक मानने से ही इंकार कर दिया था ! बाद में युवाओं के आंदोलन के दबाव में मुख्यमंत्री को सीबीआई जाँच की घोषणा करनी पड़ी.

इस परीक्षा में गड़बड़ी के मुख्य आरोपी खालिद मालिक के बारे में भी यही जानकारी सामने आई थी कि उसने चार अलग-अलग परीक्षा केन्द्रों से फॉर्म भरे थे. हालांकि खालिद के मामले में तो यह प्रश्न खड़ा होता ही है कि जब वो चार अलग-अलग फॉर्म भर रहा था तो उसे तभी क्यूँ नहीं पकड़ा गया ? वो हरिद्वार वाले परीक्षा केंद्र की रेकी करने गया, तब भी नहीं पकड़ा गया, परीक्षा के दिन भी पेपर बाहर भेजने में कामयाब रहा ! उस परीक्षा केंद्र के मालिक पर तो अभी तक भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है !

बहरहाल खालिद मालिक और सुरेन्द्र कुमार के मामले में यह समानता है कि दोनों ने ही कई-कई केन्द्रों से परीक्षा फॉर्म भरे. इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या खालिद मालिक और सुरेन्द्र कुमार अपवाद हैं या उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं के पूरे तंत्र को ऐसे ही लोगों ने हाईजैक किया हुआ है ? एक के बाद एक, दो मामलों के खुलासे से तो ऐसा लगता है कि ये अपवाद नहीं कोई षड्यंत्रकारी परिपाटी है. इसलिए यूकेएसएसएससी समेत उत्तराखंड के सारे प्रतियोगी परीक्षा तंत्र को पूरी तरह से खंगाल कर उसमें मौजूद सारे वायरसों को फॉर्मेट करने की जरूरत है. इसके लिए युवाओं को ही निरंतर सरकार और परीक्षा आयोगों पर दबाव बनाए रखना होगा.

इंद्रेश मैखुरी