शंखनाद INDIA/ विनीत त्रिपाठी /नई दिल्ली
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी न किसी मुद्दे पर सरकार और न्यायपालिका पर दबाव बनाना वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे आम बात हो गई है। यह उचित नहीं है। विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश को अस्थिर करने की मंशा रखने वालों के खिलाफ जांच होनी ही चाहिए। वैसे भी, इस तरह के गंभीर अपराध के मामले मे रिपोर्ट दर्ज कर प्राथमिक जांच करना देशहित में है। इसका विरोध नहीं होना चाहिए। सिक्किम हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली एवं दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एमसी गर्ग ने पुलिस की कार्रवाई को सही ठहराई को सही ठहराते हुए कहा कि सुबुतों के आधार पर जांच में रूकावट नहीं डालना चाहिए।
उम्र को देखकर जांच नहीं रोक सकते: सिक्किम हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली का कहना है कि कानून को मानना की होगा। सरकार की नीतियों की आलोचना लोकतंात्रिक अधिकार है, लेकिन अगर आप घृणा पैदा करें और राज्य को अस्थिर करने के लिए लोगों को एकजुट करें तो यह देशद्रोह है। सवाल यह है कि क्या एफआइआर दर्ज और जांच करने के लिए टूलकिट का यह अपराध काफी नहीं है। जहां तक दिशा रवि की कम उम्र का सवाल है तो फिर आंतकी बुरहान वानी की उम्र क्या थी।
ऐसे में जांच को आप रोक नहीं सकते। मुझे दुख होता, है कि जब कुछ कानून विशेषज्ञ कहते है कि जांच क्यों कर रहे है। यह तो कानून के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट को दवाब मे लाने का प्रयास हो रहा है, जबकि अदालतें स्वतंत्र है। देशद्रोह जैसे गंभीर मामले में जरूरी नहीं है कि कोई शिकायत करें, पुलिस खुद रिपोर्ट दर्ज कर जांच कर सकती है और यह पुलिस की प्राथमिक ड्युटी है ।
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एमसी गर्ग का कहना है कि टूलकिट का पूरा मामला सरकार के खिलाफ हथियार उठाने और देश के खिलाफ साजिश रचने का प्रतीत होता है। प्रारंभिक जांच मंे यह सामने आया है, कि लोगों को भड़काने और हथियार उठाने के लिए उकसाया जा रहा है।
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