हर साल जन्माष्टमी के अगले दिन जोश और मस्ती से मनाया जाने वाला पर्व है दही हांडी. खासतौर पर महाराष्ट्र में इसकी धूम सबसे ज़्यादा देखने को मिलती है, लेकिन अब ये त्योहार पूरे देश में लोगों को जोड़ने वाला एक उत्सव बन चुका है. इस दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को याद करते हैं और उन्हीं की तरह मटकी फोड़कर उत्सव मनाते हैं। आपको बता दें इस साल ये त्योहार 16 अगस्त को मनाया जाएगा।

दही हांडी सिर्फ एक खेल या परंपरा नहीं, बल्कि ये लोगों के बीच एकता, मेहनत और जश्न का प्रतीक बन चुका है। तो आइए जानते हैं दही हांडी की शुरुआत कहां से हुई, इसकी खास बातें और आज के दौर में इसका क्या महत्व है-

दही हांडी क्या है?

दही हांडी, जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला एक उत्सव है जिसमें श्रीकृष्ण की माखन चोरी वाली लीला को दोहराया जाता है. ऊंचे स्थान पर एक मिट्टी की मटकी टांगी जाती है जिसमें दही, माखन या मिठाइयां भरी जाती हैं. फिर लड़कों और लड़कियों की टीम मिलकर इंसानों की पिरामिड बनाती है और उस मटकी को फोड़ने की कोशिश करती है. जो टीम सबसे पहले मटकी फोड़ती है, उसे इनाम दिया जाता है. इस दौरान जगह-जगह ढोल-नगाड़ों के साथ भजन-कीर्तन और नाच-गाना भी होता है।

कैसे हुई दही हांडी की शुरुआत 

इसका ज़िक्र हमें भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की कहानियों में मिलता है. जब वे छोटे थे, तो अपने दोस्तों के साथ गांव की गोपियों के घर से माखन और दही चुराते थे. गोपियों ने मटकी को ऊंचे स्थान पर लटकाना शुरू किया ताकि कान्हा न पहुंच सकें, लेकिन श्रीकृष्ण और उनके दोस्त मिलकर पिरामिड बनाते और आसानी से मटकी तक पहुंच जाते. यही लीलाएं आज दही हांडी के रूप में मनाई जाती हैं. यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है
क्यों खास है ये पर्व?
दही हांडी सिर्फ भगवान कृष्ण की लीला को याद करने का मौका नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा पर्व है जो समाज में टीमवर्क, धैर्य और आपसी सहयोग की भावना को भी मज़बूत करता है. इसमें हिस्सा लेने वाले युवाओं की मेहनत, एकजुटता और हिम्मत इस त्योहार को और खास बना देती है।