उत्तराखंड में किशोर या किशोरी दोनों की ही शादी कम उम्र में करा दी जाती है, आज भी अधिकत्तम गांव ऐसे है जहां कम उम्र में ही शादी करा दी जाती है। अब इस बात को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गहरी चिंता जताई है कि बड़ी संख्या में किशोर अवस्था में युवक युवातियां विवाह कर रहे हैं और सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट आ रहे हैं। पूर्व में सुनवाई में कोर्ट ने मामले में सचिव बाल कल्याण चंद्रेश यादव को कोर्ट में तलब किया था जो आज कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने चंद्रेश कुमार को एक इस संबंध में लोगों को जागरूक करने व पॉक्सो अधिनियम की गंभीरता समझाने के लिए दो सप्ताह में योजना बना कर कोर्ट में प्रस्तुत करने तथा इन कार्यक्रमों को विभिन्न सम्बंधित विभागों के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों में नाटकों, लघु फिल्मों जैसे तरीकों के माध्यम से आयोजित करने के निर्देश दिए। मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद अदालत के समक्ष योजना रखे जाने पर होगी।

ये थे कोर्ट की चिंता के कारण

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने ऐसे एक प्रकरण पर सुनवाई के दौरान कहा कि यह प्रवृत्ति चिंताजनक है और इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।।मामले में 19 साल के युवक ने अपनी उम्र की एक लड़की से विवाह करने के बाद कोर्ट से युवती के परिजनों से सुरक्षा की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जहां अक्सर याचिकाकर्ता किशोर होते हैं यद्यपि अपने जीवन साथी को चुनने के अधिकार को कानूनीf मान्यता है लेकिन नाबालिग बच्चों में विवाह की प्रवृत्ति बढ़ रही है जबकि ऐसी कम उम्र में जिम्मेदारी की भावना होना मुश्किल होता है।

युवक को पॉक्सो अधिनियम के तहत गंभीर सजा

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां लड़की के माता -पिता के दावे के अनुसार बेटी नाबालिग निकली और इस आधार पर युवक को पॉक्सो अधिनियम के तहत गंभीर सजा हो गई और विवाहिता अकेली रह गई। कई मामलों में तो विवाद के बाद युवती मां भी बन गई और पति पॉक्सो में जेल चला गया या परिपक्व होने के बाद युगल अलग हो गए और बच्चा निराश्रित हो गया।इससे अन्य अपराधों को भी बढ़ावा मिलता है।

ये अहम निर्देश दिए कोर्ट ने

कोर्ट ने सचिव शिक्षा चंद्रेश कुमार को एक इस संबंध में लोगों को जागरूक करने खासकर पेरेंट्स को पॉक्सो अधिनियम की गंभीरता समझाने के लिए दो सप्ताह में योजना बना कर कोर्ट में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जिससे वे बच्चों का मार्गदर्शन कर सकें। कोर्ट ने निर्देश दिए कि इन कार्यक्रमों को आक्रामक रूप से शिक्षा विभाग, ग्रामीण विकास विभागों, आंगनवाड़ी, स्थानीय प्रशासन और पैरालीगल स्वयंसेवकों के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों में आयोजित किया जाए। युवा वयस्कों को संवेदनशील बनाने के लिए नाटकों, लघु फिल्मों जैसे तरीकों का उपयोग भी किया जाए।