चारधाम यात्रा में बढ़ते श्रद्धालुओं की संख्या के साथ ही कूड़ा निस्तारण का मामला भी गंभीर होता जा रहा है। बढ़ते कूड़े से उत्तराखंड की आबोहवा और नदियां प्रदूषित हो रही हैं। इसके साथ ही चारधाम यात्रा मेंवेस्ट को सही तरीके से मैनेज नहीं किए जाने से हिमालय पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है।

श्रद्धालुओं के साथ ही धाम में बढ़ा कूड़ा 

बता दें कि सबसे चारधामों में सबसे ज्यादा केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। केदारनाथ में लगातार बढ़ रही मानव गतिविधियों से भविष्य के लिये एक बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। हिमालय को कई नदियों, झरनों और प्राकृतिक जल स्रोतों का भंडार माना जाता है। यहां से कई जलधाराएं बहती हैं। मौजूदा दौर में यहां के हालात बदल रहे हैं। उच्च हिमालय में स्थित केदारनाथ धाम में बड़ी संख्या में यात्री पहुंच रहे हैं, जो अपने साथ कूड़ा-करकट, प्लास्टिक आदि लेजा रहे हैं। ये कूड़ा केदारनाथ धाम के चारों तरफ देखने को मिल रहे हैं। हालांकि स्वच्छता के प्रति जागरूकता का ही असर है कि इस बार केदारनाथ धाम व पैदल मार्ग समेत यात्रा पड़ावों पर एकत्र किए गए कूड़े का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण हो रहा है। इस यात्राकाल में इन स्थानों से अब तक 300 क्विंटल कूड़ा एकत्र किया जा चुका है, जिसे काम्पैक्ट करने के लिए सोनप्रयाग पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए सौ घोड़ा-खच्चर लगाए गए हैं।

सोलिड वेस्ट का निस्तारण एक बड़ी चुनौती

बात गंभीर इसलिए है क्योंकि भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ ही घोड़े खच्चरों की आवाजाही में बढ़ोत्तरी हुई है। उसे देखते हुए आगे आने वाले समय में सॉलिड वेस्ट का निस्तारण करना एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। अब इसके लिए पर्यटन विभाग एक विस्तृत अध्ययन करने जा रहा है। यह अध्ययन ऐसे संस्थान से कराया जाएगा, जिसने सॉलिड वेस्ट को लेकर कम से कम तीन वर्ष तक काम किया हो। जिला पर्यटन विकास अधिकारी कार्यालय रुद्रप्रयाग ने इसके लिए 28 अगस्त तक आवेदन मांगे हैं।

गौर हो कि वर्ष 2022 में केदारनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 15 लाख से भी अधिक थी। इस वर्ष अभी तक 12 लाख तीर्थयात्री दर्शन कर चुके हैं, जबकि सितंबर तथा अक्टूबर में एक बार फिर यात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। उम्मीद की जा रही है कि आगे आने वाले वर्षों में यह संख्या और अधिक बढ़ेगी। इन यात्रियों को गौरीकुंड से केदारनाथ लाने-ले जाने के लिए घोड़े व खच्चर एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 5000 है।

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