चमोली के जोशीमठ में हुए भू धंसाव ने सबकी चिंता बढ़ाई, लेकिन वैज्ञानिकों का अध्ययन बताता है कि जोशीमठ ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के करीब 50 प्रतिशत हिस्से में भूस्खलन के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो भूस्खलन आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि राज्य में अब तक 6,536 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किये जा चुके हैं, ये उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं माने जा सकते हैं।
12,000 की आबादी भूधंसाव के दहशत में
बता दें कि लगातार हो रही वर्षा से इन गांवों में भूस्खलन के कारण भारी नुकसान हुआ है। कई गांव तो रहने लायक भी नहीं रहे। इनमें वो गांव भी हैं, जिन्हें पुनर्वास के लिए चिहि्नत किया जा चुका है। बात करें गढ़वाल मंडल के 106 से अधिक गांवों में भी लगभग 2,500 परिवार भूस्खलन की जद में हैं। बारिश के दौरान पहाड़ दरकने और नदी-नालों में उफान आने से यह समस्या गहरा जाती है। ऐसे में इन दिनों भूस्खलन प्रभावित गांवों में रह रही लगभग 12,000 की आबादी भूधंसाव की आशंका से सहमी हुई है। आसमान में बादल घुमड़ते ही इन परिवारों की सांसें अटक जाती हैं। इस वर्ष मानसून के ज्यादा बरसने से इनकी पीड़ा और बढ़ गई।
उत्तरकाशी के 57 गांवों पर भूस्खलन का खतरा
उत्तरकाशी के 57 गांवों पर भूस्खलन का खतरा उत्तरकाशी में भूस्खलन का इतिहास डरावना है। वर्ष 1997 में यहां डुंडा तहसील का बागी गांव पूरी तरह जमींदोज हो गया था। इसके बाद वर्ष 2003 में वरुणावत पर्वत से हुए भूस्खलन ने जिले की भौगोलिक स्थिति ही बदल दी। वर्ष 2010 में भटवाड़ी गांव में भूस्खलन से 50 मकान जमींदोज हो गए। वर्ष 2012-2013 की आपदा के बाद जिले में भूस्खलन प्रभावित गांवों की संख्या तेजी से बढ़ी। फिलहाल, 57 गांवों में निवासरत 800 से अधिक परिवारों को विस्थापन की जरूरत है। इनमें भी 27 गांव भटवाड़ी, मस्ताड़ी, अस्तल, उडरी, धनेटी, सौड़, कमद, ठांडी, सिरी, धारकोट, क्यार्क, बार्सू, कुज्जन, पिलंग, जौड़ाव, हुर्री, ढासड़ा, दंदालका, अगोड़ा, भंकोली, सेकू, वीरपुर, बड़ेथी, कांसी, बाडिया, कफनौल और कोरना ज्यादा असुरक्षित हैं।
रुद्रप्रयाग के 18 गांवों पर मंडरा रहा खतरा
ऊखीमठ और रुद्रप्रयाग तहसील के 18 गांव भूस्खलन की जद में हैं। इन गांवों में भी 64 भवन भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इनमें निवासरत परिवारों के तकरीबन 250 सदस्यों को पुनर्वास के लिए चिह्नित किया जा चुका है। वैसे तो इन गांवों में भूस्खलन वर्षों से हो रहा है, लेकिन वर्ष 2013 में केदारपुरी में आई आपदा के बाद यह समस्या गहरा गई।
टिहरी के 455 परिवार खौफ में जी रहे
टिहरी के 16 गांवों में भी 455 परिवार भूस्खलन के खौफ में जी रहे हैं। लगभग 2500 की आबादी वाले इन गांवों में वर्ष 2001 के बाद यह समस्या गहराई है। एडीएम केके मिश्र के अनुसार, प्रशासन सभी 455 परिवारों को प्रति परिवार 4.25 लाख रुपये सुरक्षित स्थान पर मकान बनाने के लिए दे चुका है। वहीं भेलुंता, बैथाण, सिलारी, त्यालनी, इंद्रोला, कोट, अगुंडा, पनेथ, हलेथ, डौर, सीतापुर, तौलयाकाटल, कोकलियाल, कोठार, ग्वालीडांडा, डौर गांव खतरे के साए में जीने को मजबूर हैं।
पौड़ी में दांव पर पांच परिवारों की जान
पौड़ी के दुगड्डा में पुलिंडा गांव भी भूस्खलन की मार झेल रहा है। भूकटाव के कारण वैसे तो 60 परिवारों वाला यह पूरा गांव ही खतरे की जद में है, लेकिन पांच परिवार जान दांव पर लगाकर खतरे वाले भवनों में रहने को मजबूर हैं। जबकि, इस समस्या के चलते कुछ परिवार गांव छोड़ चुके हैं।
जोशीमठ में हैं भूस्खलन की चपेट में सबसे अधिक 800 भवन
चमोलीः खौफ में जी रहे 12 गांवों के लोग चमोली जिले में जोशीमठ शहर और 12 गांव भूस्खलन की जद में है। कुछ गांवों में वर्ष 2021 में ऋषि गंगा में आई बाढ़ से हुए कटाव के बाद यह समस्या गहराई तो कुछ गांवों में वर्ष 2013 में आई आपदा से। इससे लगभग 4200 की आबादी प्रभावित है। भूस्खलन की चपेट में सबसे अधिक 800 भवन जोशीमठ में हैं। प्रभावित गांव: रैणी, मठ, छिनका, पगनों, हरमनी पोल, झलिया, जोसियारा, देवग्राम, कनोल, सूना कुल्हाड़ी, स्यूंण।
देहरादून भी भूस्खलन से अछूता नहीं
देहरादून के दो गांवों में 1800 लोग प्रभावित देहरादून भी भूस्खलन से अछूता नहीं। यहां कालसी के खमरौली गांव में 50 और लेल्टा गांव में 65 परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं। दोनों गांवों में करीब 1800 लोग रहते हैं। खमरौली गांव में सड़क कटिंग, जबकि लेल्टा में टोंस नदी से हो रहा भूमि का कटाव भूस्खलन की वजह है।