sawan

आज से शिवजी की आराधना का महापर्व शुरू हो रहा है। इस वर्ष Sawan 58 दिनों का होगा यानी शिवजी की पूजा-पाठ और भक्ति के लिए Sawan का महीना दो माह का होगा। 4 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास रहेगा। इसी कारण से इस वर्ष सावन का महीना 2 महीने का होगा। हालांकि, Sankranti से सावन मानने वाले पर्वतीय क्षेत्रों में 17 जुलाई से सावन शुरू होगा।

शिवालयों में शिवमय हुआ वातावरण

शिव मंदिरों में भोले बाबा के नाम का जयघोष गूंजने लगा है। हर हर महादेव और बम बम भोले की गूंज से मंदिर और शिवालयों का वातावरण शिवमय हो गया है। भक्त श्रद्धा और आस्था के फूल  अपने आराध्य पर अर्पित कर रहे हैं। अगले दो महीने भक्त महादेव की पूजा-अर्चना करेंगे और उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पांच महीनों का होगा चातुर्मास 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में रहता है। अधिकमास के चलते इस बार चातुर्मास चार के बजाय पांच महीनों का होगा। सावन का महीना भगवान शिव को बहुत ही प्रिय होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन का महीना पांचवां महीना होता है।

सावन के महीने की महिमा
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। कहते हैं कि इसी महीने में समुद्र मंथन हुआ था और भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था। हलाहल विष पान के बाद उग्र विष को शांत करने के लिए भक्त इस महीने में शिवजी को जल अर्पित करते हैं। पूरे साल पूजा करके जो फल पाया जाता है, वह फल केवल सावन में पूजा करके पाया जा सकता है। यह महीना तपस्या, साधना और वरदान प्राप्ति की लिए श्रेष्ठ होता है।

19 साल बाद सावन मेंअद्भुतद्भु संयोग
इस बार सामान्य सावन के साथ अधिक मास का संयोग बन गया है, इसलिए सावन के महीने में एक महीने और अधिक मास रहेगा। यह संयोग पूरे 19 साल बाद बन रहा है। जिसमें, सावन पूरे59 दिनों का होगा। अधिक मास को पहले बहुत अशुभ माना जाता था। बाद में श्रीहरि ने इस मास को अपना नाम दे दिया, तबसे अधिक मास का नाम ‘पुरुषोत्तम मास’ हो गया।  इस मास में भगवान विष्णु के सारे गुण पाए जाते हैं। इसलिए इस मास में धर्म कार्यों के उत्तम परिणाम मिलते हैं। अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा।

ऐसें करें शिव की आराधना  

  • घर के मंदिर में सफाई कर तांबे के पात्र में शिवलिंग रखें और एक बेलपत्र अर्पित कर तांबे या चांदी के लौटे से जल चढ़ाएं। जल में गंगाजल मिलाएं। दूध चढ़ाने के लिए पीतल या चांदी के कलश का इस्तेमाल करें।
  • जलाभिषेक करने के लिए गौमुखी श्रृंगी का उपयोग करें। जलाभिषेक के समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
  • भोलेनाथ का पंचामृत से अभिषेक करें। उन्हें पान, सुपारी, धतूरा, शक्कर, घी, दही, शहद, सफेद चंदन, कपूर, अक्षत, पंचामृत, आक के फूल, गुलाल, अबीर, इत्र, शमी पत्र चढ़ाएं। शिव संग देवी पार्वती की भी पूजा करें।
  • धूप, दीप लगाकर हलवे या खीर का बेल के फल का भोग लगाएं।
    भगवान शिव का ध्यान करें और ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें, शिव चालीसा का पाठ करें और फिर शिव जी की आरती करें और अंत में प्रसाद बांट दें।

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