स्वच्छता (hygiene) के मामले में उत्तराखंड (Uttarakhand) के करीब 90 स्थानीय निकायों को अलग-अलग श्रेणियों में देश के अन्य शहरों के साथ मुकाबला करना है। इस मुकाबले में हमारे शहर बेहतर मुकाबला कर सकें और अपनी रैंकिंग में सुधार कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि पिछले सर्वेक्षण और उसके नतीजों का विश्लेषण किया जाए। देहरादून (Dehradun) स्थित थिंक टैंक एसडीसी फाउंडेशन ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में उत्तराखंड के विभिन्न निकायों के प्रदर्शन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।

इस रिपोर्ट (Report) को डिजिटल प्लेटफार्म पर जारी किया गया है। इसे फाउंडेशन ने ई-लांचिंग कहा है और उत्तराखंड मे कचरा प्रबंधन के सुधार को लेकर कुछ सुझाव भी दिये हैं। इनमें राज्य में पलायन आयोग की तर्ज़ पर कचरा प्रबंधन आयोग का गठन एक प्रमुख सुझाव है। SDC फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि रिपोर्ट में पिछले वर्ष 2022 के स्वच्छ सर्वेक्षण (clean survey) में शामिल किये गये राज्य के निकायों के नतीजों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में स्वच्छ सर्वेक्षण में सामने आये प्रमुख बिन्दुओं के साथ ही अगले स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 के लिए 10 सुझाव भी दिये गये हैं। रिपोर्ट भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों पर आधारित है जिसमें देश के कुल 4354 कस्बों और शहरों ने भाग लिया था।

स्वच्छ सर्वेक्षण-2022 के प्रमुख बिन्दु

अनूप नौटियाल ने कहा की स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में उत्तराखंड के 87 निकााय शामिल थे। एक लाख से अधिक आबादी वाले 8 शहर और एक लाख से कम आबादी वाले 79 नगर और कस्बे इसका हिस्सा थे। छोटे निकायों के मूल्यांकन के लिए देश के 5 क्षेत्र उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और उत्तर पूर्व बनाये गये थे। उत्तराखंड के 8 बड़े शहर देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, रुड़की, कोटद्वार, काशीपुर, रुद्रपुर और ऋषिकेश 1 से 10 लाख जनसंख्या श्रेणी में थे। इस श्रेणी में देश के कुल 382 शहरी स्थानीय निकाय के बीच मुकाबला हुआ था। इनके अलावा राज्य के 6 निकाय 50,000 से 1,00,000 श्रेणी में, 10 निकाय 25,000 से 50,000 श्रेणी में, 10 निकाय 15,000 से 25,000 श्रेणी में और 53 निकाय 15,000 से कम आबादी वाले निकायों की श्रेणी में शामिल थे। उत्तराखंड को विभिन्न श्रेणियों में 5 पुरस्कार मिले। हरिद्वार को 1 लाख से अधिक आबादी की श्रेणी में सबसे स्वच्छ गंगा शहर पुरस्कार मिला। हालांकि 330 की समग्र रैंक के साथ उत्तराखंड के 8 सबसे बड़े शहरों में से हरिद्वार को सबसे गंदा शहर पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 87 में से 81 निकायों को कचरा मुक्त शहर श्रेणी में शून्य अंक मिले हैं। इसी के साथ रिपोर्ट में यह चिंताजनक जानकारी सामने आयी है की 87 निकायों में से 6 को खुले में शौच से मुक्त ओडीएफ श्रेणी में शून्य अंक मिले। इन 6 शहरों मे काशीपुर, अल्मोड़ा, विकासनगर, भीमताल , केलाखेड़ा और गंगोलीहाट शामिल हैं।

SDC फाउंडेशन के 10 सुझाव

अनूप नौटियाल ने कहा की उत्तराखंड में पलायन आयोग की तर्ज़ पर कचरा प्रबंधन आयोग की स्थापना की जाए। इससे 13 जिलों के 95 ब्लॉकों में निर्धारित नियमों के तहत कचरा प्रबंधन एकीकृत तौर पर संभव हो पाएगा। वर्तमान मे अलग अलग विभाग जैसे की शहरी विकास, पंचायती राज , वन ,पर्यटन और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए कचरा प्रबंधन (Waste Management) एक बहुक्षेत्रीय मुद्दा है। इसके अलावा भारत सरकार ने 2016 में छह अलग-अलग प्रकार के कचरे कानूनों को अधिसूचित किया था। प्रदेश में आने वाले अनुमानित 6 से 7 करोड़ तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की वर्तमान वार्षिक संख्या आने वाले वर्षों में काफी बढ़ जाएगी; उपरोक्त सभी विभागों, अधिकारियों और संस्थानों को एकीकृत कर एक स्वतंत्र उत्तराखंड कचरा प्रबंधन आयोग की स्थापना पर विचार किया जाना चाहिए। अनूप नौटियाल ने कहा की इसके अलावा उत्तराखंड के सभी 70 विधायकों और सभी वरिष्ठ नौकरशाहों को स्वच्छ सर्वेक्षण प्रतियोगिता और इसकी कार्यप्रणाली से जागरूक करना जरुरी है। आज प्रचलित मानसिकता यह है की स्वच्छता को राज्य के शहरी स्थानीय निकायों और शहरी विकास निदेशालय की जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है। वरिष्ठतम राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व की सक्रिय भागीदारी के साथ उत्तराखंड में कचरा प्रबंधन की गंभीर स्थिति में सुधार संभव है।

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इसके अलावा उन्होने कहा की स्रोत पर ही कचरे का सेग्रीगेशन किया जाए। स्वच्छ सर्वेक्षण (clean survey) के परिणामों को समझने और समझाने की जरूरत है। संबधित निकायों ने क्या महसूस किया और वे कहां चूक गए, इसका विश्लेषण किया जाए। वेस्ट मैनेजमेंट प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जाए। उत्तराखंड के सभी शहरों और कस्बों को इस प्रक्रिया को अक्षरशः अपनाने की जरूरत है। रिपोर्ट के सुझावों के अनुसार कचरा प्रबंधन क्षेत्र मे क्षमता निर्माण के कार्य करने की जरूरत है। कर्मचारी और संसाधन बढ़ाये जाएं और कचरा बीनने वालों का सहयोग लिया जाए। फिलहाल ये लोग बिना सुरक्षा, वेतन और सम्मान केे कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। प्रभावी एक्सटेंडेड प्रोडूसर रिस्पांसिबिलिटी (ईपीआर) नीति को लागू किया जाए और ईपीआर का पालन न करने वालों पर कार्रवाई की जाए। अनूप नौटियाल ने अंत में कहा की कचरा प्रबंधन में जन सहभागिता और जन जागरूकता की आवश्यकता है। बिना जन सहभागिता के कचरा मुक्त उत्तराखंड की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा की आने वाले दिनों मे फाउंडेशन स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 के प्रमुख बिंदु पर भी रिपोर्ट जारी करेगा।