यूं तो उत्तराखंड(UttaraKhand) के पहाड़ी जनपदों में शिक्षा(Education) का स्तर किसी से छिपा नहीं है. यह जगजाहिर है कि सरकारें उन संस्थानों को बंद करने पर तुली है जिन से राज्य को आर्थिक मजबूती नहीं मिल रही है. जनता मूलभूत सुविधाओं से जूझ रही है और सरकारें समाज को भटकाने का कार्य बदस्तूर कर रही है. शिक्षा का स्तर गिराया ही इस लिए जाता है कि समाज निरक्षर रहे ताकि समाज सवाल पूछने लायक न बने.

राजीव गांधी नवोदय विद्यालय पर उठी उंगली

सरकार चाहती हैं कि लोग जब भी हाथ खड़ा करें तो राजनीतिक पार्टियों के नारे लगाने के लिए हाथ खड़ा हो. इन बड़े जनसमुदाय को भीड़ में तब्दील करने के लिए उस समुदाय को निरक्षर रहना जरूरी है. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ों में शिक्षा के लिए आधार मानी जाने वाले राजीव गांधी नवोदय विद्यालय पर लगातार कुछ वर्षों से उंगलियां उठ रही है. विद्यालय से लगातार अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला निरस्त कर यथावत कर रहे है.

विद्यार्थियों का कहना है कि हम अखबारों समाचार पत्रों की चकाचौंध देख कर स्कूल आये थे. लेकिन  यहां की हालत देख खुद को ठगा महसूस कर रहे है. जिस विद्यालय में शिक्षा लेने के लिए हजारों निर्धन बच्चों ने रात-दिन मेहनत कर हसीन सपने सजाए थे, वह विद्यालय जल्द भूतिया हो जाने की कगार पर खड़ा है.

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50 रुपए का एक अंडा

विद्यार्थियों का कहना है कि यहां रैगिंग होना आम बात है. यहां पर कोई नियम लागू नहीं होता है. छोटे बच्चों को जाति धर्म के आधार पर बड़ी कक्षा के बच्चों द्वारा सताया जाना, रंगभेद जैसे अनेकों तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती है. स्कूल से अपना नाम वापस लिए जाने वाले अनेकों बच्चों ने इस का बखान किया है कि बड़ी कक्षा के बच्चे छात्रावास में अण्डे बॉयल कर एक अंडा 50रुपए की दर से छोटे बच्चों को बेचते है. टूथपेस्ट, साबुन, तेल, बूट पोलिस इत्यादि छोटे बच्चों से जबर्दस्ती छीन लिया जाता है.

बड़े बच्चे लगवाते है झाडू

रैगिंग से परेशान बच्चों ने बताया कि बड़े बच्चों के लिए गर्म पानी करना झाड़ू मारना बिस्तर बनाना जैसे अनेकों कार्य छोटे बच्चों को करना पड़ता है. बच्चों के अभिभावक घर से बच्चों के लिए खाद्यान्न वस्तु भेजते है जिसे बड़ी कक्षा के बच्चे जबर्दस्ती छीन कर खा जाते है. शिकायत करने पर रैगिंग का सामना करना पड़ता है.

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वर्ष 2005 में CBSE दिल्ली बोर्ड की तर्ज पर इस विद्यालय की नींव इस लिए रखी गई थी, कि दुरस्त पहाड़ों में शिक्षा की लौ जले और समान शिक्षा के साथ बच्चों को सामाजिक समानता भी प्राप्त हो. परंतु आज शिक्षा व संस्कार का स्तर रसातल में जा चुका है. 420 विद्यार्थियों व 22 अध्यापकों की क्षमता वाला यह विद्यालय आज अंतिम सांसे गिन रहा है. विद्यालय जिस गुणवत्ता हेतु संचालित किया गया था उस का उद्देश्य पूर्ण होता नही दिख रहा है.

होस्टल पर रोज लगता है ताला

बता दें कि विद्यालय में अनेकों गैंग पनप रहे है. जिस के लिए स्कूल प्रसासन ने अभी तक कोई उचित कदम नही उठाये हैं. बच्चों व अभिभावकों का यहां तक कहना है कि बच्चों को मिल रहा भोजन पशुचारे से भी निम्न दर्जे का है. स्कूल में वॉर्डन सिर्फ खानापूर्ति हेतु नियुक्त किये गए है. रात्रि के समय वॉर्डन होस्टल पर बाहर से ताला मार कर चले जाते है, जिस के बाद वहां गुंडागर्दी का समय शुरु हो जाता है.

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बीमार बच्चों को किया जाता है कमरे में बंद

जानकारी के लिए बता दें कि जिस भौगोलिक दसा में स्कूल बना है वहां बर्फबारी व कोहरा आम बात है. यहां दूसरे शहरों के बच्चे मौसम के अनुकूल खुद को नहीं ढाल पाते है. यही कारण है कि अनेकों बच्चे बीमार पड़ जाते है, लेकिन स्कूल प्रसासन उन बच्चों को एक कमरे में बंद कर लेता है और उपचार हेतु बच्चे अपने परिजनों पर आश्रित हो जाते है. जिलाधिकारी पौड़ी को इस मामले की जानकारी है या नहीं यह तो खबर सामने आने पर पता चलेगा परंतु स्कूल प्रसासन इस बात से भलीभांति वाकिब है कि स्कूल में सब कुछ ठीक नहीं है.