यमुना घाटी में दिवाली के ठीक एक महिने बाद मंगसीर बग्वाल को देवलांग पर्व के रूप में मनाया जाता है. घाटी के गैर गांव में देवलांग के रूप में मनाए जाने वाले इस त्यौहार में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. इस दौरान ग्रामीण राजा रघुनाथ मंदिर में एकजुट होकर इस पर्व का आनंद लेते हैं.

पूरी रात करते है इंतजार

बेहद खास मान्यताओं वाले इस देवलांग पर्व को मनाने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है. यह त्यौहार दिवाली के ठीक एक महिने बाद मनाया जाता है. इस दौरान ग्रामीण रातभर राजा रघुनाथ मंदिर प्रांगण में पर्व को मनाने के लिए बेसब्री से इंतजार करते है. उजाला होने से पहले एक देवदार के विशालकायी पेड़ को जंगल से लाकर मंदिर में साठी और पन्साही दो समूह शक्ति बल दिखा कर खड़ा करते है.

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इसके बाद विधि विधान, मन्नतों और बुराई में अच्छाई की जीत के साथ पेड़ को आग के हवाले किया जाता है. जिसके बाद इसकी राख को प्रसाद के रूप में लोगों में बांट दिया जाता है, जिसे लोग आशीर्वाद के रूप में अपने घर लेकर जाते हैं.

ये है मान्यता

बताया जाता है कि जब श्री रामचंद्र जी लंका में विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे तो पूरे देश में दिवाली के रूप में जश्न मनाया गया था. लेकिन यमुना घाटी में भगवान राम के पहुंचने का संदेश दिवाली के ठीक एक महिने बाद पहुंचा. यही वजह है कि यहां के लोग सदियों से इस मान्यता के अनुसार दिवाली से ठीक एक महिने बाद इस त्यौहार को मनाते है.

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