मनोज इस्टवाल

‘वैन एलन बेल्ट’ जी हां यह शब्द के बारे में तो सबने कल्पना में सुना होगा लेकिन हकीकत में शायद किसी को पता ना हो, पूरी दुनिया में तीन पर्यटक स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शन तो होते ही हैं, जिनमें अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं। लेकिन उनके साथ ‘वैन एलन बेल्ट’ मतलब धरती के गर्भ में चुंबकीय शक्ति का होना, सभी को हैरत में डालने से कम नही हैं जहां मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र माना जाता हैं। यह खुशी की बात है कि इन तीनो में भारत के देव भूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थिति कसारदेवी शक्तिपीठ के आसपास के पहाड़ी है। इन तीनों धर्म स्थलों पर हजारों साल पहले सभ्यताएं बसी थीं। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। पर्यावरणविद भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र ‘वैन एलेन बेल्ट’ है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं।
पिछले दो साल से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है।अब तक हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं।
इन तीनों जगहों पर चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है। अध्यन करने वालो ने अपने शोध में इन तीनों स्थलों को चुंबकीय रूप से चार्ज पाया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास भी इस तरह की शक्ति निहित है।
गीतेश त्रिपाठी, अल्मोड़ा की रिपोर्ट.
आपको जानकारी दे दें कि कसार देवी उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के निकट एक का एक गाँव है। कसार क्षेत्र, कसार देवी मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। यह मंदिर दूसरी शताब्दी माना जाता है। स्वामी विवेकानन्द 1890 में यहाँ आये थे। यहाँ आकर उन्होंने साधना की है.इसके अलावा अनेकों पश्चिमी साधक यहाँ आये और यहाँ रहे। यह क्रैंक रिज के लिये भी प्रसिद्ध है जहाँ 1960-70 के दशक के हिप्पी आन्दोलन में बहुत प्रसिद्ध हुआ था। आज भी देशी-विदेशी पर्वतारोही और पर्यटक यहाँ आते रहते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (नवम्बर-दिसम्बर में) को यहाँ कसार देवी का मेला लगता है।

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