गढ़वाली, कुमाऊनी व जौनसारी भाषा का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू।
तो एम.ए. थियटर में हो रही है, हिन्दी व उत्तराखंडी रंगमंच की पढ़ाई।
हिमालय के सरोकारों के अध्ययन के लिए तेजी से विकसित हो रहा है, हिमालय अध्ययन केन्द्र।
अपने दो दशक से भी कम के कार्यकाल में देहरादून स्थित दून विश्वविद्यालय ने उत्तराखंड व हिमालय के सरोकारों से जुड़े कई नायाब कदम उठाए हैं और इस दिशा में वह निरंतर आगे बढ़ रहा है।
विश्वविद्यालय का हिमालय अध्ययन केन्द्र, हिमालय के ऐतिहासिक, कला- संस्कृति, भूगर्भीय, पर्यावरण, हिमालयन आर्थिकी अध्ययन व रंगमंच अध्ययन के बड़े केन्द्र के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है।
यहां रंगमंच में एम.ए. कोर्स शुरू है, जिसके लिए यहां फैकल्टी के रूप में प्रतिष्ठित थियेटर विशेषज्ञ तैनात हैं और साथ ही समय समय पर गेस्ट फेकल्टी के रूप में रंगमंच व फिल्म जगत के जानी मानी हस्तियों को आमंत्रित किया जाता है।उल्लेखनीय है उत्तराखंड फिल्म, सीरियल, सार्ट फिल्म्स व एड फिल्मों के लिए देशभर में सबसे लोकप्रिय डेस्टीनेशन के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है, इसलिए यहां के स्थानीय कलाकारों की मांग तेजी से बढ़ रही है।यही कारण है कि दून विश्वविद्यालय का रंगमंच कोर्स युवाओं के लिए सुनहरा भविष्य लेकर आ रहा है।
यहां गढ़वाली, कुमाऊनी व जौनसारी भाषा का एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स शुरू हो चुका है, जिससे ये तीनों बोलियां देश की प्रतिष्ठित भाषाओं की सूची में जुड़ने की ओर आगे बढ़ रही है। भविष्य में उत्तराखंड की प्रतिष्ठित व समृद्ध बोलियों में एक रवांल्टी बोली को भी जोड़ने पर विचार हो रहा है।
यहां हिन्दी सहित स्थानीय भाषाओं के प्रतिष्ठित नाटकों के मंचन का अभियान जारी है।इस हिमालयी सरोकारों से जुड़ी शिक्षा व्यवस्था के अभियान में विश्वविद्यालय की उप कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल, गहराई से जुड़ी हैं। कम बोलने वाली सुरेखा कहती है कि आदमी की जुबान के बजाए उसका काम ज्यादा बोले तो बेहतर होता है।
प्रोफेसर सुरेखा के जेहन में अभी भी दून विश्वविद्यालय को नियमित शिक्षा के साथ साथ एक ऐसा हिमालयी अध्ययन केन्द्र विकसित करने की योजना है, जिसकी पहिचान राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन सके