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देहरादून : (त्रिलोक चंद भट्ट) उत्तराखंड सरकार की किरकिरी कराने में लगे एन एच उधमसिंहनगर घोटाले के मुख्य आरोपी ने इन दिनों उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को खुर्दबुर्द करने की नीयत से शासन स्तर पर काम शुरू कर दिया है,यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि मंत्रालय का ही सचिव है।

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बताते चलें कि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय इन दिनों चर्चाओं में है,आयुर्वेद के विश्वविख्यात डॉ सुनील कुमार जोशी जो आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति हैं ,को गलत तरीके से फंसाने के लिए पूर्वांचल के भ्र्ष्ट अफसरों का गठजोड़ सचिवालय में रहकर दिन रात काम कर रहा है,मजे की बात यह है कि यह बड़ा खेल जेल की सजा काटकर आये आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ मृत्युंजय मिश्रा को पुनः आयुर्वेद विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार बनाने के लिए खेला जा रहा है।

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मृत्युंजय मिश्रा उत्तराखंड के सबसे भ्रष्टतम अधिकारियों में से एक है। इसके खिलाफ आयुर्वेद विश्वविद्यालय में दर्जनों मामलों पर कार्यवाही हो चुकी है, जिसके चलते एसआईटी जांच के बाद यह व्यक्ति वर्षों सलाखों के पीछे रहक़र भी आ चुका है। बात यहीं खत्म नहीं होती,मृत्युंजय मिश्रा ने सरकारी तंत्र में धनबल के चलते अपनी मजबूत पैठ बनाई हुई है। उत्तराखंड सचिवालय में आयुष मंत्रालय से सम्बंधित सभी अफसरों को उपर्युक्त व्यक्ति द्वारा हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। पूर्व मुख्य सचिव ओम प्रकाश सिंह के वरद हस्त के चलते इस व्यक्ति ने सचिवालय में अपनी अच्छी खासी घुसपैठ बनाई हुई है, जिस कारण हर एक अधिकारी इसकी उंगलियों के इशारे पर काम करता है। यह जानकारी प्रकाश आयी है कि कुलपति डॉ सुनील जोशी को फसाने का मुख्य षडयंत्रकारी मृत्युंजय मिश्रा ही है। सूत्र यहां तक बताते हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय को भी मैनेज करने के लिए मृत्युंजय मिश्रा ने अफसरों की पूरी कायनात लगा दी है। मुख्यमंत्री को आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति के सम्बंध में गलत जानकारियां रोज फीड कराई जा रही हैं।

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मीडिया जगत के बड़े अखबारों को भी कुलपति डॉ सुनील कुमार जोशी के बारे में गलत तथ्य परोसे जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसारं इस षढ़यंत्र के तार आयुष विभाग के सचिव पंकज पांडे से भी सीधे तौर पर जुडे़ हैं। उत्तराखंड सचिवालय में कार्यरत सम्बंधित विभाग के सचिव पंकज कुमार पांडे राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाले के मुख्य सूत्रधार हैं, इससे पूर्व इसी घोटाले से जुड़े हुए चंद्रेश यादव भी आयुष मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं, जिन्होंने मृत्युंजय मिश्रा को कुलसचिव के पद पर जॉइन कराने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था, पिछले दिनों ही जेल से रिहा होने के बाद इन दोनों की सचिवालय में बहाली हुई है। भ्रष्टाचार के कुएं गिरे इन अधिकारियों का नया निशाना हाल के दिनों में आयुर्वेद विश्वविद्यालय बना है।

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गौरतलब है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के मामले में शासन ने विश्वविद्यालय के कुलपति मृत्युंजय मिश्रा को निलंबित कर दिया था। दरअसल, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में विजिलेंस ने चार्जशीट दी थी। उस दौरान आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन पर मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में 3 दिसंबर, 2018 को मिश्रा को गिरफ्तार कर जिला कारागार , देहरादून में भेजा गया था।। मृत्युंजय मिश्रा ने गत वर्ष जमानत पर बाहर आने के बाद फिर से आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में ज्वाइनिंग मांगी थी। जमानत पर बाहर आने पर मृत्युंजय मिश्रा ने शासन को पत्र लिखकर फिर से अपनी नियुक्ति आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में करने को कहा था।

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मृत्युुंजय मिश्रा को 28 दिसंबर, 2021 को शासन ने आयुर्वेद विवि में बतौर कुलसचिव बहाल किया था। भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर को बहाल करके प्राइम पोस्टिंग देने के मामले में उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी की पूर्ववर्ती सरकार सवालों के घेरे में रही है । सूत्रों के अनुसार कई महिने पहले विजीलेंस ने शासन को लिखे पत्र में भी कहा था कि आयुर्वेद विवि के कुलसचिव के पद पर मृत्युंजय मिश्रा की पोस्टिंग उचित नहीं है। क्योंकि मिश्रा के खिलाफ जांच के बाद केस अदालत में ट्रायल पर है। इस मुक़दमे में गवाह भी आयुर्वेद विवि के अधिकारी हैं। ऐसे में यदि मिश्रा यहां कुलसचिव रहेंगे तो गवाहों पर दबाव बनाने की आशंका रहेगी। विजिलेंस की चिट्ठी के बाद इस मामले में शासन के अधिकारियों के साथ ही तत्कालीन विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत की भूमिका संदिग्ध होने के साथ पूरी सरकार कटघरे में आ गयी थी। तब मुख्यमंत्री ने पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए बस इतना ही कहा कि वह इस मामले को दिखवा रहे हैं। विजिलेंस जांच के शिकंजे में फंसे डॉ. मृत्युंजय मिश्रा को कुछ दिन बाद शासन ने आयुर्वेद विवि कुलसचिव पद से हटा कर। उन्हें आयुष सचिव के पास संबद्ध कर दिया था। मिश्रा, विवि में एक माह का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। जिसके बाद से ही वह आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर सुनील जोशी से खार खाए बैठे हैं, और लगातार षड़यंत्र कर रहे हैं।

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आयुष विभाग के सचिव आईएएस डॉ. पंकज कुमार पांडेय बहुचर्चित एनएच घोटाले में निलंबित रह चुके हैं। एनएच 74 भूमि अधिग्रहण प्रकरण में पंकज पांडेय को 11 सितंबर 2018 को निलंबित किया था। यहां बता दें कि एनएच के लिये अधिग्रहण संबंधी ज्यादातर कार्यवाही डॉ. पंकज पांडेय के कार्यकाल में ही हुई थी। गिरफ्तारी से बचने के लिये पांडेय हाईकोर्ट तक गये थे। एसआईटी ने भूमि अधिग्रहण में अनियमिततायें बरतने का आरोप लगाते हुये डॉ. पंकज पांडेय के साथ एक अन्य आईएएस चंद्रेश यादव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। सात माह बाद पंकज पांडेय का निलंबन खत्म हुआ था। उच्च न्यायालय के आदेश पर देहरादून नगर निगम देहरादून ने अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया था। कालीदास रोड पर स्थित आईएएस पंकज पांडेय के घर की दीवार पर भी लाल निशान और नोटिस भी चस्पा किया था।

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आरोप है कि आईएएस ने अपनी हनक दिखाते हुए नोटिस को फाड़ा और लाल निशान को थिनर से मिटा दिया गया था। यह मामला भी सुर्खियों में रहा था। पंकज पांडेय ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी रहते हुये भी काफी चर्चित रहे थे। जिलाधिकारी रहते हुये डॉ. पंकज पांडेय शस्त्र लाइसेंस बनाने में काफी उदार दिखे थे। बताया जाता है कि उस वक्त शस्त्र लाइसेंस की फाइलों को उन्होंने धड़ाधड़ पास किया था। इसको लेकर कई बार सवाल भी उठाये गये। शहर में बने एक अस्पताल के मामले में भी डॉ. पांडेय का नाम उछलता रहा था। इसके अलावा कई विवादों में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. पांडेय का नाम खूब उछलता रहा था।

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अधीनस्थों के साथ दुर्व्यवहार तो उनके लिये आम बात रही है। वहां के जिले के मुखिया के तौर पर निरीक्षणआदि के दौरान कई भी अधिकारियों के साथ भी दुर्व्यवहार किया था। तब उनकी कार्यप्रणाली को लेकर अधिकारियों व कर्मचारियों में काफी आक्रोश था। एन झा इंटर कॉलेज में निरीक्षण के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी प्रधानाचार्य तक से भिड़ गये थे। आरोप था कि डॉ. पांडेय ने प्रधानाचार्य की योग्यता तक पर सवाल उठा दिये थे। मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने खेद जताकर मामले को शांत कराया था। एक कलेक्ट्रेट के कर्मचारी के साथ भी अभद्रता पर कर्मचारी संगठन लामबंद हुये तो मामला सुलह समझौते से निपटाया गया था। विवादों के चलते डॉ. पंकज पांडेय की जिले से छह नबंवर 2015 को विदाई हो गयी थी। स्वास्थ्य सचिव रहते हुये महिला चिकित्सक से दुर्व्यवहार को लेकर भी इनका नाम चर्चाओं में आया था

(त्रिलोक चंद भट्ट)