देश में केंद्र सरकार की नई स्कीम अग्निपथ का विरोध हो रहा है. युवा सड़क पर आ गए हैं। कई ट्रेनें और बसें फूंक दी गई है। अग्निपथ स्कीम युवाओं को हीं भाई और वो सड़कों पर उतर कर सरकार का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस भी इसको लेकर सड़क पर उतर आई है। अब सेना में चार साल के लिए भर्ती कियाजाएगा और पेंशन नहीं मिलेगी. युवाओं का कहना है कि ऐसी नौकरी से क्या फायदा जिससे ना तो घर बना पाएं और ना ही अपनी बहन की शादी कर पाएं। और ना ही बुढापे का सहारा यानी की पेंशन मिलेगी। लेकिन एक आंकड़ा आपको चौका देगा। जो सरकार फिजूल खर्ची की बात करती है और सेना भर्ती में बदलाव कर पेंशन को बंदकरने का ऐलान करती है वो सरकार जन प्रतिनिधि पर जितना खर्च करती है उसे देख युवाओं का खून खौल उठेगा।
भारत में कुल 4120 एमएलए और 462 एमएलसी
जी हां बता दें कि ये आँख फाड़ दिमाग़ को हिला देने वाला सच है जिसे पढ़ कर आप भी हैरान रह जायेंगे। आपको बता दें कि भारत में कुल 4120 एमएलए और 462 एमएलसी हैं यानी की कुल 4,582 विधायक है। सरकार को जन प्रतिनिधि पर खर्चकरने में कोई संकोच नहीं होता लेकिन सीमा पर तन कर जो भारी भरकर रायफल उठाकर देश की रक्षा कर रहे हैं उनको पेंशन देने के लिए सरकार के पास अब पैसे नहीं है। सरकार का खजाना सिर्फ जन प्रतिनिधियों के लिए भरा है सैनिकों के लिए सरकार का खजाना खाली हो गया है।
एक विधायक में हर महीने खर्च होते हैं 2 लाख रुपये
आपको बता दें कि प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। अर्थात 91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभग 1100 करोड़ रूपये। भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं। इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति महीने 5 लाख दिया जाता है।अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर साल इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है।अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है।
मूल वेतन भत्ते के अलावा मुफ्त में मिलती है ये सुविधाएं
ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई। इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही है।अर्थात लगभग 30 अरब रूपये खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों पर।अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर।एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है।7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है।इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है।
सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते
इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं।Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं।जिन पर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है।इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं. अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम से कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं।
हर साल नेताओं पर होते 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च
इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है। यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जायेगा। अब सोचिये हम हर साल नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता है ?
क्या यही है लोकतंत्र ?
यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला गया होता है। इस फिजूलखर्ची को देखते हुए भारत में दो कानून अवश्य बनने चाहिए। पहला- चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध, नेता केवल टीवी के माध्यम से प्रचार करें. दूसरा- नेताओं के वेतन भत्तो पर प्रतिबंध. तब दिखाओ देशभक्ति. प्रत्येक भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा?