रिपोर्ट अवधेश नोटियाल, पत्रकार

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आज देश के हर कोने में हर धर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है, इस लड़ाई में आज तक अनगिनत जानें जा चुकी हैं और न जाने कितनी और जानें जाती रहेगी। सभी धर्मों का सार एक ही है। धर्म रूपी ये नदियां अंत में एक ही महासागर में गिरने वाली हैं। फिर भी हम अपनी संकीर्ण सोच और धार्मिक उन्माद से ग्रसित होकर स्वविवेक त्याग तथ्यों तथा तर्कों को भूलकर धर्म के नाम पर हिंसा में लिप्त हो जाते हैं।

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देश संविधान के आधार पर चलता है, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के नाम पर कई नेता लोग भड़काऊ भाषण देते हैं। मॉब लीचिंग के नाम पर निर्दाेष लोग मारे जा रहे हैं। धार्मिक हिंसा को रोकने के लिए चुनावों में धर्म का इस्तेमाल बंद होना चाहिए। कोई भी पार्टी कितनी भी बड़ी क्यों न हो,

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यदि वह चुनावों में धर्म की आड़ लेती है, तो उसकी मान्यता ही रद्द कर देनी चाहिए। ऐसा होने पर धर्म के नाम पर हिंसा काफी कम हो सकती है। धर्म के नाम पर हिंसा अच्छे संकेत नहीं है। सभी धर्मों के धर्मगुरुओं को अपने-2 धर्मावलंबियों से ऐसा न करने का संदेश देना चाहिए। साथ ही ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

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देश की संसद ऐसा कानून बनाए, जिससे धर्म की राजनीति पर अंकुश लगे। सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से ही धर्म के नाम पर हिंसा को रोका जा सकता है। आजकल कई बार सोशल मीडिया भी इस तरह की हिंसा को भड़काता है। लोगों को कानून अपने हाथ में लेने से बचना चाहिए तथा कानून को अपना कार्य करने देना चाहिए।

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