शंखनाद / देहरादून / शिमला : उत्तराखंड में आज भू- कानून का मुद्दा गरमाया हुआ हैं। गढ़वाल सभा शिमला में उत्तराखंड के भू- कानून को बिल्कुल बेकार बताते हुए इसे उत्तराखंड के लोगों और उत्तराखंड के प्रवासियो के हितो पर कुठाराघात बताया हैं। सभा के महासचिव सुसील उनियाल ने कहा कि उत्तराखंड सरकार को हिमाचल जैसा कठोर भू-संसोधन कानून बनाना चाहिए। उत्तराखंड के भू -कानून में क्या-क्या बदलाव होने चाहिए इसका पूरा ड्राफ्ट तैयार करके उत्तराखंड सरकार को भेजा गया हैं।

उनियाल ने बताया कि शिमला में उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले अधिकारियो ने इस ड्राफ्ट को तैयार किया हैं। इसके अध्यक्ष रिटायार्ड जॉइंट सेकेट्री लॉ राजेंद्र भट्ट थे। हिमाचल भू-कानून का अध्ययन करने के बाद उन्होंने उत्तराखंड सरकार को अपने भू-कानून में बदलाव को कई पत्र भी भेजे हैं।  जानकारी के लिए बता दे, शिमला सभा के महासचिव सुशील उनियाल ने बताया कि प्रस्ताव व सुझावों को तैयार करने के लिए उत्तराखंड प्रदेश में अपनाए गए उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 तथा समय-समय पर प्रदेश सरकार द्वारा इसमें किये गए संशोधनो का अध्ययन किया गया तथा हिमाचल प्रदेश के लैंड एंड टेनेंसी एक्ट, 1972 तथा उसकी धारा-118 आदि का उक्त उत्तराखंड अधिनियम से तुलनात्मक अध्य्यन करने उपरांत, गहन विचार विमर्श करके जो प्रस्ताव तैयार किया उसे दिनांक 21 अक्टूबर 2021 को उत्तराखंड सरकार को उनकी website: boardof revenue-uk@gov.in and crc. ddn99@gmail. com पर भेज दिया गया है।

समिति ने पाया कि उत्तराँचल अधिनियम संख्या: 29 वर्ष 2003 में जो धाराएं व नियम जोड़े गए हैं वह अधिकांशतः हिमाचल प्रदेश के उक्त भू कानून से लिये गए हैं किंतु जो अति आवश्यक धाराएं व नियम जो उत्तराखंड की सीमित कृषि भूमि को बचाने के लिए जोड़े जाने चाहिए थे। उन्हें छोड़ दिया गया तथा अनावश्यक धाराएं , जो उत्तराखंड मूल निवासियों के हित में नहीं हैं, उन्हें अपनाया गया।। वर्ष 2007 में उत्तराखंड भू-कानून में किया गया कुछ संशोधन उत्तराखंड के मूल निवासी के हित मे प्रतीत होता है किंतु वर्ष 2018 में भू-सुधार कानून में जो संशोधन किया गया है उससे तो प्रतीत होता है कि केवल पर्वतीय क्षेत्र की भूमि को बेचने के लिए ही संशोधन किया गया। सुनील जोशी ने कहा कि यदि वर्तमान सरकार प्रदेश के भोले भाले मूल निवासियों की हित चिंतक है और भू कानून में संशोधन के प्रति गम्भीर है, तो वर्ष 2018 में किये गए संशोधन पर अध्यादेश द्वारा तुरन्त रोक लगाए।