शंखनाद INDIA/ संवाददाता “आरती पांडेय” : आप आज दशहरा उत्सव का लुप्त उठाने के लिए दशहरा ग्राउंड जाना चाहते है , तो पहले आप यह जान लीजिए हर साल क्यों दशहरा दिवस का बड़ा सा उत्सव मनाया जाता है। यदि आपको नही पता तो हम आपको बताते है…दशहरा वेसे तो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है….रावण वध को असत्य पर सत्य की विजय, अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक भी मानते हैं। प्रभु श्रीराम ने लंका नरेश को पराजित कर मां सीता को रावण की कैद से मुक्त कराया। … रावण प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था।

सच तो यह है कि हम प्रतीक के रूप में इस पर्व को मनाते हैं और रावण दहन के बाद खुशी से राम की जयकार करते हैं। लेकिन यह पर्व कई मायने में यह संदेश दे जाता है कि हर स्तर पर हमें अपने अंदर की बुराइयों को रावण के साथ ही खत्म कर देना चाहिए। अच्छाई और बुराई के बीच में एक रेखा होती है जो कभी-कभी इतनी बारिश होती है कि उसे देख पाना संभव नहीं हो पाता है। हम कह सकते हैं कि अच्छाई की ओर बढ़ने में समय लगता है, बुराई आपको सहजता से अपनी और आकर्षित कर लेती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि समय-समय पर हम दशहरा जैसे पर्वो के माध्यम से सत्य-असत्य अच्छाई और बुराई के बारे में जान सके।

घर में रावण जलाने से क्या होता है?

यहां रावण का पुतला जलाने के बारे सोचना भी महापाप माना जाता है। यदि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो जलाने वाले की मौत निश्चित है। माना जाता है कि बैजनाथ में रावण ने भगवान शिव की एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या की थी।

प्रेमनगर में शाम को पांच से साढ़े छह तक होगी पूजा

धर्मशाला समिति प्रेमनगर एवं दशहरा कमेटी के तत्वाधान में 30 फीट ऊंचे रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले दहन शाम को होगा। कमेटी के मीडिया प्रभारी रवि भाटिया ने बताया कि कोरोना को देखते हुए इस वर्ष पुतलों की ऊंचाई कम रखी गई है। लंका 12 फीट ऊंची रहेगी।

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