देहरादून :
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2017 से भाजपा सरकार बनने से लेकर अब तक चर्चाओं में रहे एवम माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंद कर दिए गए सुभारती हॉस्पिटल एवं मेडिकल कॉलेज जिसमे अध्यन्नरत एमबीबीएस के 300 छात्रों को सरकार द्वारा भ्रष्टाचार एवं भारी अनियमितताओं के चलते राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करना पड़ा और राज्य सरकार पर 1 अरब रुपए का अतिरिक्त अधिभार पड़ा और आज 4 वर्ष बीतने पर भी 72 करोड़ की वसूली चिकित्सा शिक्षा विभाग करने में असमर्थ और निखट्टू साबित हुआ है, में एक बड़ा घोटाला आरटीआई के माध्यम से सामने आया है ।
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वॉयस ऑफ नेशन द्वारा बड़ा खुलासा किया गया था कि चिकित्सा शिक्षा निदेशालय की जांच और स्थलीय आख्या के अनुसार उक्त कॉलेज एवम ट्रस्ट के नए नाम एम टी वी टी बी आर चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम कोई जमीन ही राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं है तथा अस्पताल भी 3 वर्षो से क्रियाशील नही नही है , के बावजूद अब नया खुलासा सामने आया है ।खुलासा यह है कि निदेशालय ,सीएमओ देहरादून , निदेशालय स्तर की कमेटी के अनुसार उक्त अस्पताल का पंजीकरण ही अस्पताल के तहत नही है तथा उक्त सुभारती अस्पताल 2018 से क्रियाशील ही नही है क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उक्त अस्पताल काफी समय सील रहा और उसके बाद 2 वर्षो तक छात्रों को शिफ्टिंग आदि , तथा सरकार द्वारा अटैच करके 1 अरब वसूली की करवाही गतिमान रही जिसमे आज की तिथि को भी 72 करोड़ रुपए राज्य सरकार द्वारा सुभारती वालो से वसूलना है
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घोटाले का पर्दाफाश तो तब हुआ जब 5 जुलाई 22 को राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण से प्राप्त RTI में पता चला की इस बंद रहने के दौरान इस अस्पताल को वर्ष 2018 से अब तक 4 करोड़ 25 लाख का भुगतान कर दिया गया और 60 लाख रुपए दिया जाना अभी बाकी है ,अवगत करवाया गया यानी की सरकार अपनी 72 करोड़ की वसूली तो दूर उल्टा फर्जीवाड़ा कर बिल लगा रहे सुभारती वालो को 4 करोड़ का भुगतान कर चुकी है । क्या यह उचित नहीं होता कि उक्त भुगतान करने की बजाय सरकार का चिकित्सा शिक्षा , स्वास्थ्य विभाग अपनी वसूली करता और हाल में छात्रों की 27 लाख प्रतिवर्ष MBBS फीस निर्धारित करने में 72 करोड़ वसूली का प्रावधान भी करता परंतु दबाव और सांठगांठ के चलते सरकार ने यह कदम नहीं उठाया ।
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यही हाल रास बिहारी बोस सुभारती विश्विद्यालय का भी है जिसमे हाई कोर्ट में राज्य सरकार ने एवम शासन की नोट शीट में भी वर्णन है की नियम और कानून की अनदेखी कर कोर्ट द्वारा स्टे के चलते कैबिनेट और विधान सभा को गुमराह करते हुए यूनिवर्सिटी पारित की गई और 2017 की सरकार बनने के समय से खुलासा होने पर विभागीय मंत्री धन सिंह रावत क्या कहते रहे वो आप सुनिए और समझिए की इतना सब होने के बावजूद भी मंत्री जी चुप क्यों है ? सबसे मजेदार बात यह है कि लोक सूचना अधिकारी दीपक खंडूरी ने 2011 से भुगतान करना दिखाया है जबकि 2011 में वर्तमान मैनेजमेंट और वर्तमान संचालक भी अस्तित्व में नही थे और न पंजीकरण था और पूर्व की तिथि भी इस RTI में छुपाई और उनके नंबर पर फोन करके जानकारी लेने के बाद उन्होने स्वीकार किया कि 2.17 करोड़ का भुगतान 2018 से बाद से हुआ है और यह भी स्वीकार किया की अस्पताल का सरकार के पास पंजीकरण न भी तो भुगतान बिलो के आधार पर कर दिया जाता है यानी अवेध अस्पताल खोलिए और भुगतान प्राप्त कीजिए ।
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जिन्हे उत्तराखंड की जनता एक दिन मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती थी वो इस हत्या आरोपी और घोटालेबाज उत्तर प्रदेश से यहां आकर भू माफिया गिरी करने वाले अतुल भटनागर के हाथ का खिलौना बन कर रह गए और क्या ऐसे में चिकित्सा शिक्षा विभाग की इन पर रह पाएगा क्योंकि पिछले दिनों सहकारिता का घोटाला और आज के अखबार में अटल आयुष्मान घोटाले से भरे पड़े है और प्रदेश में सबसे ज्यादा घोटाला इन्ही के विभाग के 2017 से अब तक हुआ है ।
साभार voice of Nation