देहरादून। उत्तराखंड जहां एक ओर अपने गठन की रजत जयंती मनाने की तैयारियों में जुटा है, वहीं दूसरी ओर स्थायी राजधानी की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। देहरादून के प्रेस क्लब में रविवार को पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी विनोद प्रसाद रतूड़ी ने ‘स्थायी राजधानी गैरसैंण समिति’ की नई रणनीति की घोषणा की।
रतूड़ी ने कहा कि अब यह आंदोलन निर्णायक मोड़ पर है, और यदि सरकार ने इस बार ठोस निर्णय नहीं लिया, तो जनता का शांतिपूर्ण आंदोलन ‘आक्रोशपूर्ण प्रतिरोध’ का रूप ले लेगा।
विधानसभा सत्र से पहले सरकार को चेतावनी
रतूड़ी ने कहा कि आगामी 3 और 4 नवम्बर को बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र में यदि गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने का निर्णय नहीं लिया गया, तो समिति 9 नवम्बर से व्यापक विरोध शुरू करेगी। उन्होंने कहा कि बीते 25 वर्षों में जनता ने धैर्य रखा है, लेकिन अब यह धैर्य समाप्ति की कगार पर है।
“हमने 25 साल इंतजार किया, अब और प्रतीक्षा नहीं। यदि सरकार नहीं चेती तो यह शांतिपूर्ण आंदोलन ‘आक्रोशपूर्ण प्रतिरोध’ में बदल जाएगा,” विनोद प्रसाद रतूड़ी, मुख्य संयोजक
9 नवम्बर से तीव्र विरोध प्रदर्शन
समिति के मुख्य संयोजक रतूड़ी ने बताया कि 9 नवम्बर, जो उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस है, से आंदोलन का नया चरण शुरू होगा। इस दिन से कर्णप्रयाग में समिति के सदस्यों द्वारा धरना-प्रदर्शन किया जाएगा।
साथ ही, प्रदेशभर में सरकारी कार्यक्रमों, नेताओं और अधिकारियों के विरोध में काले झंडे दिखाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस दिन से आंदोलन “जनजागरण और जनदबाव” का रूप ले लेगा।
26 नवम्बर से ‘लाइट बंद’ और ‘काले झंडे’ अभियान
विरोध की अगली कड़ी में समिति ने 26 नवम्बर से ‘हर गाँव में लाइट बंद’ आंदोलन की घोषणा की है। इस दिन शाम के समय पूरे प्रदेश में एक घंटे तक बिजली की लाइटें बंद रखी जाएंगी, ताकि जनता का असंतोष सरकार तक पहुँचे। इसके साथ हर घर और दुकान पर काले झंडे लगाने की भी अपील की जाएगी।
‘3 K और 1 T’ आंदोलन की अनूठी रूपरेखा
पूर्व आईएएस अधिकारी रतूड़ी ने आंदोलन को प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक रूप देने के लिए ‘3 K’ (कचिया, कंडाली, कंडी) और ‘1 T’ (त्रिशूल) की अवधारणा प्रस्तुत की।
कचिया (भैरव पूजा): शिव व भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और घंटा-घड़ियाल बजाकर ‘सत्ता के कर्णधारों’ की बुद्धि-शुद्धि की प्रार्थना की जाएगी।
कंडाली (Urtica): यह पहाड़ की बिच्छू घास का प्रतीक है, जिसका उपयोग सुधार और चेतावनी दोनों के रूप में किया जाएगा।
कंडी: पहाड़ की महिलाओं के श्रम का प्रतीक यह टोकरा, आंदोलन के दौरान सम्मान और विरोध दोनों का संकेत बनेगा।
त्रिशूल: न्याय और संघर्ष के प्रतीक छोटे-छोटे त्रिशूल मंदिरों में वितरित किए जाएंगे।
जनता से सहयोग की अपील
रतूड़ी ने कहा कि यह आंदोलन किसी दल विशेष का नहीं बल्कि उत्तराखंड की अस्मिता और सम्मान का प्रश्न है। उन्होंने राज्य की जनता से अपील की कि वे गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के इस “निर्णायक जनांदोलन” में एकजुट होकर शामिल हों।
“गैरसैंण उत्तराखंड की आत्मा है। अब निर्णय का समय है—या तो सरकार जनभावनाओं का सम्मान करे, या फिर जनता अपना रास्ता खुद तय करेगी।” विनोद प्रसाद रतूड़ी
गौरतलब है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने की मांग राज्य गठन (2000) से ही उठती रही है। अब राज्य की रजत जयंती के अवसर पर यह मांग एक बार फिर पूरे जोश और जनसमर्थन के साथ उभर आई है।
