मरीजों को डंडी और कंधे के सहारे सड़क तक पहुंचाने में लगे लोगों की कई तस्वीरें सामने आती हैं। कई बार आपदा के दौरान पुल या सड़क टूटने से मदद पहुंचाने में भी देर हो जाती है। इन्ही सब परेशानियों को देखते हुए आईटीडीए ह्यूमन लिफ्टिंग ड्रोन तकनीकी पर काम कर रहा है।
गांवों से सड़क तक लाने के में हुई परेशानियों से निजात पाने के लिए इन गांवों से मरीजों को ड्रोन के सहारे एंबुलेंस तक पहुंचाया जा सकेगा। ऐसा ड्रोन विकसित करने के लिए (आईटीडीए) और आईआईटी रुड़की ने हाथ मिलाया है। यह ड्रोन आपदा की स्थिति में भी बेहद उजागर साबित होगा।
120 KG उठाने में सक्षम
आपदा के दौरान पुल और सड़क टूटने से प्रभावित क्षेत्र में मदद पहुंचने में भी देर होती है। ऐसी स्थिति में घायल लोग जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते रहते हैं। 2013 में केदारनाथ और इसी साल टिहरी जिले में आई आपदा में ऐसा ही हुआ था। इसी के देखते हुए आईटीडीए ह्यूमन लिफ्टिंग ड्रोन तकनीकी पर काम कर रहा है। आईटीडीए के तकनीकी विशेषज्ञों का मकसद है कि कम से कम 120 किलो वजन उठाने वाले ड्रोन तैयार किए जाएं। जल्द ही ट्रायल भी शुरू हो सकते हैं।
उत्तरकाशी से देहरादून तक ट्रायल
आईटीडीए ने पिछले दिनों डिलीवरी ड्रोन का ट्रायल किया था। इसके तहत एक ही बार में ड्रोन से राहत सामग्री उत्तरकाशी से देहरादून भेजी गई थी। यह ट्रायल सफल रहा था। अभी इसके और ट्रायल होंगे। आईटीडीए ने आपदा प्रबंधन विभाग के लिए नवनेत्र ड्रोन तैयार किया है। यह ड्रोन आपदा प्रभावित क्षेत्र में फंसे लोगों की पहचान कर बचाव दल को पूरी सूचना उपलब्ध कराता है। आईआईटी रुड़की के साथ मिलकर जल्द ही यह ड्रोन तैयार हो जाएगा। और 120 किलो वजन के साथ इसका ट्रायल भी जल्द किया जाएगा।